मध्यप्रदेश के ये किसान भी चाहते हैं कि सरकार सभी फसलों पर दे MSP


किसान जब देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा है तो सरकार को किसानों पर भी विचार करना चाहिए।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
उनकी बात Updated On :

न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर किसानों के दिल्ली में चल रहे आंदोलन और पंजाब हरियाणा समेत अन्य राज्यों से किसानों की हो रही मांग पर मध्य प्रदेश के किसान भी सहमत हैं। यहां के किसान भी चाहते हैं कि सरकार अनाज का लाभकारी मूल्य दें। भारत की अर्थव्यवस्था में किसानों किसानों का भी अथक योगदान है।

देश की 70 फीसदी अर्थव्यवस्था किसानों से है तो सरकार औद्योगिक घरानों और व्यापारियों को सब्सिडी देती है। उसे किसानों पर उदारता दिखाना चाहिए।
विभिन्न किसान संगठन और आम किसान भी कहते हैं कि फसल के पर्याप्त दाम नहीं मिलते।

सरकार सभी 23 फसलों पर एमएसपी की गारंटी दे तो किसानों की माली हालत सुधर सकती है।  किसान कहते हैं कि बरसों से अनाज के दाम जस के तस हैं। किसान ही एक ऐसा व्यक्ति है जो अपने वस्तु का दाम नहीं कर सकता इससे खेती-बाड़ी हमेशा किसानों के लिए घाटे का सौदा बनी है। यह बात भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष शंकर सिंह पटेल के इस बयान से बेहतर समझ में आती है।

शंकर पटेल कहते हैं कि ” आज से 25 साल पहले सोयाबीन के दाम 4500 प्रति क्विंटल थे, वह आज भी हैं। पहले एक क्विंटल सोयाबीन बेच कर 200 लीटर की डीजल की केन भर कर ले आते थे और थोड़े पैसे भी बचे रहते थे पर आज भी सोयाबीन के दाम 4000 – 4500 प्रति क्विंटल हैं। अब 200 लीटर डीजल 20 का आएगा।”
वह कहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों की जरूरत है।

भारतीय किसान संघ से ही जुड़े पिपरिया तहसील के अध्यक्ष ओम रघुवंशी कहते हैं कि जब सरकार औद्योगिक घरानों को सब्सिडी देती है उनके कर्ज माफ कर सकती है तो उसका यह कहना बेमानी है कि एमएसपी से सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। किसान जब देश की अर्थव्यवस्था का हिस्सा है तो सरकार को किसानों पर भी विचार करना चाहिए।

गोटेगांव के झांसी घाट के किसान रामचरण लोधी कहते हैं कि उन्होंने कई किसानों से चर्चा की । सब किसान चाहते हैं कि अनाज का एक निश्चित दाम तय होना ही चाहिए कि वह इतने से कम ना बिके । रामचरण लोधी स्वयंसेवी संगठन मोबाइल वाणी से जुड़े हैं। वह किसानों से लगातार चर्चा करते रहते हैं।

जिला ग्रेन मर्चेंट नरसिंहपुर के जिला सचिव लाल साहब जाट न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर दूसरी तरह का इत्तेफाक रखते हैं।  वह किसानों को न्यूनतम समर्थन मिलना चाहिए इसकी पैरवी तो करते हैं पर रहते हैं कि सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। यह किसानों को समझना चाहिए। वह कहते हैं कि जैसे घर का बजट होता है कि पहले घर में अनाज किराना पर खर्च होता है फिर दूसरी प्राथमिकता कपड़ा, शिक्षा स्वास्थ्य को लेकर होती है।

इसी तरह सरकार का बजट है। किसानों को अनाज की एमएसपी सभी अनाजों पर मिले, यह संभव नहीं है। वह कहते हैं कि साल में कई अनाज एमएसपी से अधिक मूल्य पर बिकते हैं।

कई किसानों का कहना है कि खेती-बाड़ी की लगातार लागत बढ़ रही है। उत्पादन पर अब विपरीत प्रभाव है। जलवायु परिवर्तन, महंगे खाद बीज, नकली खाद बीज और हर साल महंगे से महंगे होते जा रहे कीटनाशक ने किसानों की कमर तोड़ दी है। किसान और सरकार की अपनी अपनी मजबूरियां हैं पर किसी न किसी तरह खेती-बाड़ी को अगर अनुकूल स्थितियां नहीं मिलेगी तो आने वाले दिनों में खेती और अधिक घाटे का सौदा होगी।



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