इंदौर में कोई उपभोक्ता केरोसिन का पात्र नहीं, साठगांठ से हो रही कालाबाजारी


शहर में प्रतिमाह दो लाख लीटर केरोसिन का आंवटन कंट्रोल दुकानों पर होता है, लेकिन ये कहां और कैसे खपाया जाता है। इसका जवाब विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के पास भी नहीं है। केरोसिन कब आता है और कब गायब हो जाता है, यह किसी को पता नहीं चलता। एक तरह से केरोसिन अलादीन का चिराग बन गया है।


vinay-yadav विनय यादव
इन्दौर Updated On :
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इंदौर। शहर के ऐसे गरीब जो गैस सिलेंडर का खर्च वहन नहीं कर पाते, उनके लिए सरकार ने केरोसिन की व्यवस्था की है ताकि वे अपना काम चला सकें। लेकिन, खाद्य अधिकारियों की मिलीभगत से यह केरोसिन ऑटो रिक्शा चलाने और पेट्रोल में मिलाने के काम आने लगा है।

जानकारी के मुताबिक, शहर में प्रतिमाह दो लाख लीटर केरोसिन का आंवटन कंट्रोल दुकानों पर होता है, लेकिन ये कहां और कैसे खपाया जाता है। इसका जवाब विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के पास भी नहीं है। केरोसिन कब आता है और कब गायब हो जाता है, यह किसी को पता नहीं चलता। एक तरह से केरोसिन अलादीन का चिराग बन गया है।

जिला कलेक्टर मनीष सिंह ने दो दिन पहले शहर के राशन माफिया के काले कारनामों को उजागर किया था। इन माफियाओं के संरक्षणकर्ता खाद्य नियंत्रक आरसी मीणा को भी दोषी मानते हुए उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज करा दिए गए। माफियाओं ने बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल डकारा था जो गरीबों के लिए आवंटित हुए थे।

फिर उठने लगे सवाल –

कंट्रोल दुकानों पर उपभोक्ताओं के लिए गेहूं, चावल, शकर, नमक, दाल, चना, मसाला, चायपत्ती और केरोसिन का आवंटन आता है। प्रत्येक कंट्रोल दुकानों पर उपभोक्ताओं की संख्या के मान से आवंटन निर्धारित किया जाता है।

कुछ महीने से दाल, चना, मसाला का आंवटन बंद कर दिया गया है, लेकिन शेष सामग्री प्रतिमाह नियमित रूप से आवंटित होती है। इसका सारा खाका भी खाद्य विभाग के पास संधारित रहता है।

आश्चर्य की बात है प्रशासन ने कंट्रोल दुकानों से केवल गेहूं और चावल की कालाबाजारी ही पकड़ा जबकि शेष सामग्री को लेकर कुछ नहीं किया। इससे अब लोग प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल उठा रहे हैं।

राशन का पात्र कौन-

कंट्रोल दुकानों से उन उपभोक्ताओं को राशन का पात्र माना जाता है, जिनके पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड या अनाज पात्रता पर्ची हो। पात्रता पर्ची में दर्ज परिवार की संख्या के मान से अनाज मिलता है।

एक सदस्य को चार किलो गेहूं, एक किलो चावल, एक किलो शकर, एक किलो नमक और चार लीटर केरोसिन दिया जाना निर्धारित है। गेहूं, चावल, नमक एक रुपये प्रति किलो, शकर 13 रुपये प्रति किलो तथा किरोसिन 15 रुपये प्रति लीटर बेचने के आदेश हैं।

ये बनाया बहाना –

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ साल पहले उज्ज्वला योजना में गरीब तबकों को गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने की योजना बनाई थी, जिसके तहत लोगों को काफी गैस कनेक्शन मुहैया करवाए गए थे।

इसके बाद सभी राशन दुकानों पर बोर्ड लगा दिया गया कि जिन उपभोक्ताओं के यहां गैस कनेक्शन हैं, वे केरोसिन लेने के पात्र नहीं होंगे। ऐसे उपभोक्ताओं की सूची भी खाद्य विभाग को भेज दी गई, लेकिन आवंटन लगातार जारी रहा।

शहर के सौ फीसदी कंट्रोल दुकान उपभोक्ताओं के यहां गैस कनेक्शन हैं। जिनके यहां कनेक्शन नहीं है, वे ब्लैक में गैस सिलेंडर खरीदकर रोटी पका रहे हैं। ऐसे में कोई भी उपभोक्ता केरोसिन लेने का पात्र नहीं है तो सवाल यह उठता है कि आखिर केरोसिन कहां जाता है।

जांच के नाम पर खानापूर्ति –

जिले में 541 कंट्रोल दुकान और सवा चार लाख से अधिक उपभोक्ता हैं। इनकी जांच का जिम्मा शहरी क्षेत्र के दस खाद्य इंस्पेक्टरों के पास है। सभी को क्षेत्रवार कालाबाजारी रोकने का जिम्मा दिया गया है।

लेकिन, सभी इंस्पेक्टर दिनभर कार्यालय में बैठकर गपशप करते हैं। कोई शिकायत आ जाती है तो उनका निवारण करते हैं और घर लौट जाते हैं। यदा-कदा जांच के नाम पर खानापूर्ति करते हैं। यही कारण है कि बड़ी मात्रा में अनाज घोटाला सामने आया है।

अब खलबली मची –

राशन घोटाला सामने आने के बाद गुरुवार को कलेक्टोरेट स्थित खाद्य विभाग के ऑफिस में इंस्पेक्टर एक-दूसरे से चर्चा करते रहे। वहीं, यह भी कहते पाए गए कि कंट्रोल दुकानदारों को दबाया नहीं गया तो खुद पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं।

सूत्रों की मानें तो घोटाले में अकेले आरसी मीणा ही नहीं बल्कि पांच इंस्पेक्टर भी शामिल हैं जो कंट्रोलर और दुकानदारों के बीच चैन बनकर काम करते थे। अब वे अपने आकाओं के पास जाकर बचने की मुद्रा में आने लगे हैं।



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