मृत्युलोक ही महाकाल लोक, भव्यता नहीं भाव महत्वपूर्ण


इस जगत में हमारे शरीर की पिक्चर का डिस्प्ले महाकाल की कृपा के बिना संभव है क्या? इतने विराट स्वरूप को सोशल मीडिया की डीपी में कैसे सीमित किया जा सकता है?


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अतिथि विचार Published On :
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सरयूसुत मिश्रा।

भूत भावन मृत्युलोक के अधिपति भगवान महाकालेश्वर को कोई कभी भी नहीं भूलता क्योंकि महाकाल अगर भूल गए तो फिर भौतिक संसार में वह बचेगा कैसे? महाकाल विराजे तो सप्तपुरी उज्जैयनी में है लेकिन कोई भी हृदय क्या महाकाल के भाव से मुक्त है? उसे मुक्ति चाहिए तो महाकाल के अलावा दूसरा आसरा है क्या?

महाकाल काल के नियंत्रक हैं, उनको स्थान और किसी भी भौतिक दिव्यता से कैसे बांधा जा सकता है? फिर भी भौतिक जगत में तो भौतिक दृश्य ही दिखाई पड़ते हैं और उन्हीं पर ही विमर्श होता है। आजकल महाकाल परिसर की भव्यता और दिव्यता के लिए तैयार किए गए नए कोरिडोर की खूब चर्चा है। होना भी चाहिए।

महाकाल परिसर के विस्तार और विकास के लिए सतत प्रयास हमारा उत्तर दायित्व है। जिसने भी इस उत्तरदायित्व को निभाया है उसको निश्चित रूप से महाकाल का फल मिलेगा ही। महाकाल परिसर में जो नया कॉरिडोर बनाया गया है उसको महाकाल लोक का नाम दिया गया है, जिसका लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अक्टूबर को करेंगे। यह भव्य और दिव्य अवसर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश को मिला है।

भव्यता नहीं भाव महत्वपूर्ण

महाकाल लोक में नया विस्तार किया गया है। जो दृश्य दिखाई पड़ रहे हैं वह निश्चित ही मनमोहक हैं। कोई भी तीर्थ स्थल हो उसमें भौतिक रूप से बदलाव आते रहते हैं। विस्तार और विनाश होता रहता है लेकिन तीर्थ स्थल भवन और भव्यता से नहीं बल्कि भाव से जाने और माने जाते हैं। आजकल तीर्थ को भी कामना तक सीमित कर दिया गया है। जो भी निर्माण हुआ है वह भावना का प्रतीक होगा तो इससे उसका सही प्रतिफल मिलेगा। लोकार्पण समारोह का भावना केंद्रित रहना काल के कपाल पर महाकाल के भाव को शिखर पर पहुंचाने में सहयोगी बन सकता है।

भगवान कृष्ण और उज्जैन का गहरा नाता

जब महाकाल परिसर के विस्तार की इतनी व्यापक चर्चा हो रही है तो यह अवसर इस बात के लिए भी उपयुक्त है कि स्मरण किया जाए महाकाल का शाश्वत सनातन स्वयंभू शिवलिंग उज्जैयनी में कैसे स्थापित हुआ था? भगवान कृष्ण और उज्जैन का बहुत गहरा नाता है। भगवान कृष्ण की शिक्षा से आज पूरी दुनिया आलोकित है। भगवान कृष्ण की जो शिक्षा आज विश्व में शांति और सद्भाव का आधार बनी हुई है, वह शिक्षा उज्जैन से ही निकली है। भगवान कृष्ण ने उज्जैन में स्थित संदीपनी आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी।

भगवान कृष्ण के पूर्वजों की भक्ति से प्रकट हुआ महाकाल ज्योतिर्लिंग

शिव पुराण में भगवान महाकालेश्वर के प्रकट होने की दिव्य कथा में भी यह बताया गया है कि महाकाल ज्योतिर्लिंग भगवान कृष्ण के पूर्वजों की भक्ति और श्रद्धा से प्रकट हुआ था। शिव पुराण कथा में यह बताया गया है कि उज्जैयनी में चंद्रसेन नाम के महान राजा थे। शिव के पार्षदों में प्रधान तथा लोकबंदित मणिभद्र जी राजा चंद्रसेन के सखा हो गए थे। उन्होंने राजा से प्रसन्न होकर उन्हें चिंतामणि नामक मणि दी थी। इस मणि की दिव्यता से दूसरे राजाओं में उसके प्रति लोभ बढ़ गया था। राजाओं ने सेना के साथ उज्जयिनी को घेर लिया तब राजा चंद्रसेन ने महाकालेश्वर की आराधना की।

शिव पुराण के अनुसार उन्हीं दिनों नगर में एक ग्वालन रहती थी जिसका एक बालक था। ग्वालन ने अपने बालक के साथ राजा चंद्रसेन द्वारा पूजित स्थान पर महाकाल के दर्शन किए। ग्वालन के बालक ने घर आने के बाद अपने निवास के पास ही एक पत्थर लाकर रखा और उसकी पूजा अर्चना की। बालक की भक्ति को देखकर उसकी मां ने उसे घर ले जाने के लिए प्रयास किया। बालक भगवान शंकर के ध्यान में था। मां के बार-बार जोर जबर्दस्ती से वह मूर्छित हो गया। जब उसे होश आया तो देखा उसी स्थान पर भगवान शिव के स्वरूप महाकाल का सुंदर मंदिर बन गया है।

शिव पुराण में उज्जैन में समस्त देवताओं से पूजित हनुमान के प्रकट होने का भी उल्लेख है। हनुमान ने बालक को भगवान शंकर का श्रेष्ठ भक्त बताया था। कथा के अनुसार उस बालक ने लोक में संपूर्ण भोगों का उपभोग कर अंत में मोक्ष प्राप्त किया। हनुमान जी ने कहा था कि इसी बालक की वंश परंपरा के अंतर्गत आठवीं पीढ़ी में महा यशस्वी नन्द उत्पन्न होंगे जिनके यहां साक्षात भगवान नारायण पुत्र रूप में प्रकट होकर श्रीकृष्ण के नाम से प्रसिद्ध होंगे। शिवभक्त उस बालक को जगत में श्रीकर के नाम से विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

महाकाल के नाम पर राग और वैभव की कामना

पूरा भौतिक जगत मृत्यु की ओर सतत आगे जा रहा है। मृत्यु की कतार लगी हुई है? कोई पहले है, कोई पीछे है, कोई बीच में है, लेकिन कतार में सब लगे हैं। जन्म को मृत्यु का पहला दिन माना जाएगा। मृत्यु की दौड़ में भी महाकाल के नाम पर राग और वैभव की कामना मृत्यु को अस्वीकार करने के आश्चर्य जैसा ही माना जाएगा। महाकाल परिसर में जो भी विस्तार किया गया है उसे भौतिक दिव्यता और भव्यता से ज्यादा शास्वत और सनातन महाकाल की भावना से जोड़ना ज्यादा जरूरी है।

मृत्युलोक में हमारा होना ही महाकाल की डीपी

महाकाल को एक कैबिनेट बैठक में राजा के रूप में स्थापित करना बहुत गंभीर प्रयास नहीं कहा जा सकता। महाकाल के नाम पर मोबाइल की डीपी बदलने का आह्वान भी समझ से परे है। मृत्युलोक में हमारा होना ही महाकाल की डीपी है। अस्तित्व जगत में हमारे शरीर की पिक्चर का डिस्प्ले महाकाल की कृपा के बिना संभव है क्या? इतने विराट स्वरूप को सोशल मीडिया की डीपी में कैसे सीमित किया जा सकता है?

महाकाल कालों के काल हैं, उनकी भक्ति सहजता, सरलता, और भावना में समाहित है। उसके लिए दिखावा दृष्टि का कोई महत्व नहीं है। ऐसी उम्मीद भी की जानी चाहिए कि महाकाल लोक के लोकार्पण अवसर को राजनीति से परे रखा जाए और इस अवसर पर सभी राजनीतिक विचारधाराओं को शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाए क्योंकि यह अवसर भक्ति का है राजनीति का नहीं।

(आलेख सोशल मीडिया से साभार)







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