आईआईएमसी के महानिदेशक के रूप में संजय द्विवेदी ने ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया


प्रो. संजय को एक बार पुनः माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अपने प्रोफेसर के रूप में पाकर वहां के छात्रों को भी प्रसन्नता होगी।


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अतिथि विचार Updated On :
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– गिरीश पंकज

दो-तीन दशकों तक सक्रिय पत्रकारिता की लम्बी पारी खेलने के बाद मीडिया गुरु के रूप में भी चर्चित रहे प्रो. संजय द्विवेदी तीन साल तक (2020-23) भारतीय जन संचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक रहने के बाद अब वापस माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में पुनः प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं देंगे।

द्विवेदी 12 जुलाई को महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इस बीच उन्होंने जो अकादमिक इतिहास बनाया, वह यादगार रहेगा। इनकी अकादमिक प्रतिभा का सुपरिणाम रहा कि इसके पहले यह संस्थान कभी इतना चर्चित नहीं रहा। तीन सालों में संजय ने संस्थान में हिंदी का जो वातावरण बनाया, वह अभूतपूर्व रहा।

यहां दो दर्जन से अधिक अकादमिक पद वर्षों से खाली थे, उन पदों पर नियुक्तियाँ कराई। कुछ नए पाठ्यक्रम भी शुरू कराए, जैसे जम्मू और अमरावती में हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम। दिल्ली में भी डिजिटल मीडिया का पाठ्यक्रम शुरू किया। तीन नई पत्रिकाएँ भी शुरू कीं, ‘राजभाषा विमर्श’, ‘आईआईएमसी न्यूज’ और ‘संचार सृजन’, जिसके माध्यम से अनेक सक्रिय लेखकों-पत्रकारों को जोड़ा। इन पंक्तियों के लेखक ने भी इनमें अपना रचनात्मक योगदान किया।

संस्थान के प्रकाशन विभाग को और सक्रिय किया। संविदा आधार पर कुछ नियुक्तियां की। उल्लेखनीय बात यह भी रही कि भारतीय भाषाओं की कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित कराई। कोरोना काल के दौरान विदेशी मीडिया भारत विरोधी कार्य कर रहा था, संजय ने इस पर एक स्तरीय शोध कार्य करवाया और उसे पुस्तक के रूप में छापा भी।

धर्मपाल जैसे महान चिंतक की जब शताब्दी हुई, तो धर्मपाल प्रसंग नामक पुस्तक का प्रकाशन भी किया। कोरोना काल में ऑनलाइन साप्ताहिक ‘शुक्रवार संवाद’ नामक कार्यक्रम शुरू किया, जो काफी सफल रहा, उस दौरान मनीषियों ने मीडिया पर जो कीमती विचार व्यक्त किए, उसकी पुस्तक प्रकाशित की। इसके साथ ही संस्थान को दिल्ली से भी बाहर विस्तार देने का कार्य किया।

नवंबर, 2022 को आइजोल का स्थायी परिसर शुरू हुआ, जिसका शुभारंभ राष्ट्रपति महोदया ने किया था। जम्मू परिसर भी अब बनकर तैयार है। वहां कक्षाएँ भी शुरू हो चुकी हैं। लोकार्पण होना बाकी है। प्रो. संजय के प्रयासों से अमरावती में संस्थान को जमीन मिल चुकी है। दिल्ली परिसर का इन तीन वर्षो में विस्तार मैंने खुद देखा है, वहाँ अपना रेडियो के लिए स्टूडियो बन गया है। सोशल मीडिया और जनसम्पर्क के लिए कक्ष भी तैयार हो गया है।

इन सबके साथ ही पिछले तीन वर्षो में संस्थान में नियमित कार्यक्रमों की बाढ़-सी आ गई थी। तीन साल में हर बार ‘सत्रारम्भ’ आयोजन हुए, जिनकी खासी चर्चा रही। महानिदेशक का दायित्व निभाते हुए प्रो. संजय ने महत्वपूर्ण विषयों पर लेखन कार्य भी जारी रखा। अमृतकाल पर उनकी पुस्तक हो, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आकाशवाणी से प्रसारित कार्यक्रम ‘मन की बात’ पर केंद्रित पुस्तक हो, यानी अपना कार्य करते हुए उन्होंने रचनात्मक लेखन बंद नहीं किया। मीडिया से संबंधित उनके अनेक लेख निरन्तर प्रकाशित हुए। नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिण दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में भी संजय की सक्रियता यादगार रही। उन्होंने 76 संस्थाओ को हिंदी में काम करने के लिए प्रेरित किया।

प्रो. संजय ने तीन सालों में जितनी सक्रियता दिखाई, वह इनके सहज जीवन का हिस्सा कही जा सकती है। संजय जहां भी रहे, इसी तरह युवा ऊर्जा के साथ सक्रिय रहे। संस्थान के समस्त अधिकारियों और छोटे-से छोटे कर्मियों से इनका आत्मीय व्यवहार मैंने खुद देखा है। इनको जब महानिदेशक बनाया गया, तो कुछ हताश-निराश लोगों ने इनके विरुद्ध दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका तक दायर कर दी थी, लेकिन संजय विचलित नहीं हुए, अंततः इनकी विजय हुई।

भोपाल में भी इनके विरुद्ध कुछ विघ्नसंतोषी लामबंद हुए थे। वहां भी ये डटे रहे और दिल्ली तक पहुंच कर अपनी क्रियाशीलता का झंडा गाड़ दिया। अपने तीन वर्षीय कार्यकाल को सफलतापूर्व निभाते हुए ‘ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया’। उल्टे उस चदरिया को और उज्ज्वल किया, अपने कर्म रूपी साबुन से। मुझे विश्वास है कि तीन सालों में भारतीय जन संचार संस्थान, दिल्ली ने जो राष्ट्रीय पहचान कायम की, वह एक बानगी बन गयी, अब आने वाले पदाधिकारी इनके कार्य को आगे बढ़ाएंगे। मगर संजय का कार्यकाल स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा, ऐसा विश्वास है।

जैसे जहाज का पक्षी लौट कर फिर जहाज में आता है, उसी तरह संजय भी भोपाल आकर एक बार फिर पत्रकारिता के छात्रों के बीच अपनी उसी लोकप्रियता के साथ रम जाएंगे, जैसा तीन साल पहले तक रमे रहते थे। उनके उस लोकप्रिय रूप को मैंने भोपाल में भी देखा है, इसलिए इतना लिख सका हूँ। प्रो. संजय को एक बार पुनः माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अपने प्रोफेसर के रूप में पाकर वहां के छात्रों को भी प्रसन्नता होगी।

मेरी शुभकामनाएँ।

(लेखक देश के जाने-माने साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।)