दिग्विजय और थरूर का क्या कसूर? राजनीति में क्यों चाहिए जी हुजूर?

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अतिथि विचार Published On :
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सरयूसुत मिश्र।

कांग्रेस में गैर गांधी अध्यक्ष का पत्ता खुल गया है। करीब 80 साल के मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे। चुनाव अब केवल औपचारिकता रह गया है। खड़गे के नामांकन के समय कांग्रेस मुख्यालय में जिस तरह के दृश्य दिखाई पड़ रहे थे, उससे साफ है कि गांधी परिवार का पार्टी में ऑफिशियल फेस खड़गे ही होंगे।

राहुल गांधी अध्यक्ष बनने से पीछे हट गए और उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे खड़गे अध्यक्ष की कुर्सी पर पहुंच गए। गांधी परिवार ने कांग्रेस की विरासत को पतन की सियासत की ओर धकेल दिया है। दलितवाद के नाम पर पंजाब में अमरिंदर को हटाकर चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने का गांधी परिवार का फैसला जिस तरह पंजाब में कांग्रेस के लिए विनाशकारी साबित हुआ है उसी तरह खड़गे भी कांग्रेस के लिए चन्नी ही साबित होंगे। खड़गे पार्टी अध्यक्ष रहेंगे या गांधी परिवार की कंपनी यंग इंडिया लिमिटेड के प्रिंसिपल ऑफिसर के पद की भूमिका का निर्वाह पार्टी में करेंगे जैसे कि वह अभी कंपनी में कर रहे हैं।

कांग्रेस को आज ऐसे अध्यक्ष की जरूरत थी जो पार्टी को क्रियाशील कर सके, गतिशील बना सके। दिग्विजय सिंह और शशि थरूर दोनों मेरिट के हिसाब से इस काम के लिए मुफीद होते लेकिन इन दोनों का क्या कसूर है? दिग्विजय को तो चुनाव की प्रक्रिया से ही बाहर जाना पड़ा। थरूर भले ही चुनाव लड़ रहे हों लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर के नामांकन भरने के दृश्य ही परिणाम घोषित कर रहे हैं। खड़गे के साथ नामांकन के समय कांग्रेस के सारे नेता गांधी परिवार के इशारे के बिना उपस्थित नहीं थे।

आज देश की राजनीति अयोग्यता के संकट से गुजर रही है। योग्यता को हमेशा पीछे धकेला जाता है। यही कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन में भी हो रहा है। दिग्विजय सिंह को अध्यक्ष के उम्मीदवार से क्यों पीछे हटना पड़ा, इसका बहुत दिलचस्प विश्लेषण राजनीतिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के रणनीतिकार राहुल गांधी की यात्रा को छोड़कर कांग्रेस अध्यक्ष की उम्मीदवारी की प्रक्रिया में शामिल होने वे दिल्ली अपनी मर्जी से आये होंगे, ऐसा नहीं माना जा सकता। गांधी परिवार ने उनको मोहरे के रूप में आगे बढ़ाया।

अशोक गहलोत द्वारा जयपुर में गांधी परिवार और कांग्रेस के चीरहरण के बाद यह तय हो गया था कि अध्यक्ष की रेस से गहलोत बाहर हो गए हैं। दिग्विजय सिंह प्लान ‘बी’ के रूप में राहुल गांधी की यात्रा से आगे बढ़ाए जाते हैं। राजनीतिक हलकों में लगभग तय माना जा रहा था कि दिग्विजय सिंह कांग्रेस की राइट चॉइस हैं। फिर रातों-रात खेल बदलता है। दलित नेता के नाम पर खड़गे मैदान में उतार दिए जाते हैं और दिग्विजय सिंह स्वयं उनके प्रस्तावक बन जाते हैं।

युवाओं के दौर में कांग्रेस का बूढा नेतृत्व पार्टी को गति देने में कितना सफल होगा? दक्षिण भारत के खड़गे उत्तर भारत में तो कार्यकर्ताओं की भावना भी समझने में शायद सफल ना हो सकें? यह अलग बात है कि वर्तमान हालात में कांग्रेस में बिखराव के बीच खड़गे के अलावा शायद कोई नेता भी नहीं था जिस पर आम सहमति बन जाती।

दिग्विजय को रेस से पीछे इसीलिए आना पड़ा क्योंकि गांधी परिवार का विश्वस्त होने के बावजूद उन पर आम सहमति नहीं बन सकती है। उनको लेकर अंदरखाने कांग्रेस में विरोध के स्वर मुखर हुए। जी-23 के नेता भी दिग्विजय के खिलाफ सक्रिय हुए। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि दिग्विजय के गृह राज्य मध्यप्रदेश में भी दिग्विजय की दावेदारी को ऊपरी तौर पर तो स्वीकार किया गया लेकिन अंदर खाने राजनीतिक चालें चली जाती रहीं।

राजनीतिक प्रेक्षक यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि राजनीति में गहरे मित्र दिग्विजय और कमलनाथ अध्यक्ष पद के नामांकन के समय साथ ना दिखें। इसका मतलब है कमलनाथ को अंदाजा था कि सीन बदलने वाला है। शायद इसलिए ही कमलनाथ दिल्ली नहीं गए। दिग्विजय के समर्थक बड़ी संख्या में दिल्ली में उनके निवास पर पहुंच गए। इन समर्थकों को भेजने में कमलनाथ ने भूमिका निभाई, लेकिन वे खुद नहीं पहुंचे। यही राजनीति में होता है।

राजस्थान की गुत्थी को सुलझाने में भी भोपाल से तार जोड़े गए। यहां तक कि एक पूर्व मंत्री ने दिग्विजय सिंह के अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी के खिलाफ बयान तक दे डाला था। जी-23 के नेताओं का उपयोग किया गया। दिग्विजय के खिलाफ माहौल बनाया गया और गांधी परिवार को इस बात के लिए सहमत कराया गया कि दिग्विजय उनके लिए विश्वसनीय हो सकते हैं, लेकिन रबर स्टैंप नहीं हो सकते।

अशोक गहलोत के धोखे से दूध का जला गांधी परिवार छाछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहता था। उनके सामने कांग्रेस के भविष्य से ज्यादा अपना भविष्य था। गांधी परिवार ऐसे नेता को अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाना चाहता था जिस पर किसी भी प्रकार से गांधी परिवार से अलग अपना वजूद स्थापित करने की ना तो योग्यता हो और न क्षमता।

दिग्विजय और शशि थरूर दोनों ऐसा नेता हैं जो भरोसे के लेवल पर तो गांधी परिवार के साथ खड़े हो सकते हैं लेकिन उनकी अपनी चमक है, अपना सोच-विचार और चिंतन है। खासकर दिग्विजय तो ऐसे नेता हैं जो अपने इरादों पर अडिग रहते हैं। गांधी परिवार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर कोई सवाल नहीं हो सकता। दिग्विजय अकेले ऐसे गैर गांधी परिवार के नेता हैं जिनकी पूरे देश में जान-पहचान और संपर्क हैं।

विपक्षी नेताओं में भी उनके जीवंत संपर्क दिखाई पड़ते हैं। कांग्रेस छोड़कर गए पुराने नेताओं से उनके दोस्ताना संबंध कई बार देखे गए। दिग्विजय सिंह में क्षमता है कि वे पार्टी में जान फूंकने सड़कों पर उतर कार्यकर्ताओं में जोश भर सकते हैं, संगठन के हर स्तर पर समन्वय के साथ ही वे विपक्षी एकता को भी आकार देकर विपक्ष में अलग थलग दिखने लगी कांग्रेस को विपक्षी एकता की धुरी भी बना सकते हैं।

दिग्विजय की योग्यता उनके लिए सबसे बड़ी अयोग्यता बन गई है। उनके बारे में कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह से कोई सहमत-असहमत तो हो सकता है लेकिन कोई भी उनको इग्नोर नहीं कर सकता। पार्टी में भी यही स्थिति है। उनको इग्नोर करना मुश्किल है लेकिन कभी महत्वपूर्ण पोजीशन पर बैठाना हो तो राजनीतिक चालें-कुचालें चली जाती रहती हैं।

दिग्विजय सिंह ने गांधी परिवार का भरोसा री-गेन कर लिया है। भारत जोड़ो यात्रा का श्रेय भी उनके खाते में ही जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष बनने से तो दिग्विजय पिछड़ गए हैं लेकिन कांग्रेस में उनका भविष्य चमकदार रहेगा। राज्यसभा में उन्हें मल्लिकार्जुन खड़गे के स्थान पर कांग्रेस दल का नेता बनाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी में उन्हें महत्वपूर्ण पोजीशन दी जा सकती है लेकिन असल में होगा क्‍या, यह सब बाद में पता चलेगा।

मल्लिकार्जुन खड़गे वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं, लेकिन वर्तमान हालात में पार्टी को जिस चमत्कार की जरूरत है, उनमें उस चमत्कार की क्षमता दिखाई नहीं पड़ती। नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे से भी ईडी द्वारा पूछताछ की जा चुकी है। गांधी परिवार का उन पर ‘ट्रस्ट’ असंदिग्ध है लेकिन कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में उनकी भूमिका संदिग्ध ही रहेगी।

गांधी परिवार एक तरफ परिवारवाद के आरोप से डर रहा है, लेकिन पारिवारिक ट्रस्ट से बाहर किसी को मौका देना भी नहीं चाहता। खड़गे कांग्रेस के लिए चमत्कार कर पाएंगे या नहीं यह तो समय बताएगा लेकिन गांधी परिवार के लिए जरूर वे ट्रस्टवर्दी साबित हो सकते हैं।

(आलेख सोशल मीडिया से साभार)