किसने कह दिया मोदी हार जाएँगे और सत्ता छोड़ देंगे ?


गणित समझाया जा रहा है कि 2024 के चुनावों में भाजपा की सीटें अगर कम भी हो जाएँ पर उसका वोट शेयर 2019 वाला ही क़ायम रहे तब भी महिला आरक्षण सरकार की सत्ता में वापसी करा देगा। कैसे ?


श्रवण गर्ग
अतिथि विचार Published On :

 

( यह आलेख मैंने डेढ़ माह पूर्व 14 जुलाई 2023 को लिखा था। संपादित अंशों के साथ पुनः जारी कर रहा हूँ। संसद का पाँच-दिवसीय विशेष सत्र महत्वपूर्ण घोषणाओं के लिए 18 से 22 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है।चर्चा है कि संशोधित ‘महिला आरक्षण विधेयक’ इसी विशेष सत्र में प्रस्तुत किया जा सकता है। संसद का यह सत्र देश के जीवन में बड़ी उथल-पुथल मचाने वाला साबित हो सकता है। आलेख में लिखी बातें संदर्भ के लिए काम आ सकतीं हैं।)

 

बहस बंद कर देना चाहिए कि लोकसभा की 543 सीटों के लिए होने वाले चुनावों में अगर भाजपा को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो मोदी सत्ता से बाहर हो जाएँगे और विपक्ष की सरकार दिल्ली में क़ाबिज़ हो जाएगी । जनता को विपक्ष से उसके पीएम चेहरे का नाम-पता पूछना हाल-फ़िलहाल के लिए बंद कर देना चाहिए।

 

‘मोदी सत्ता नहीं छोड़ेंगे’ के सिलसिले में जनता को दो-चार घटनाक्रमों पर बारीकी से बहस प्रारंभ कर देना चाहिए। पहली तो यह कि महत्वाकांक्षी ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना के दूसरे कामों को रोक सबसे पहले नया संसद भवन तैयार करवाने के पीछे कोई तो ज़बर्दस्त कारण रहा होगा ! वह क्या था ? दूसरे यह कि देश का ध्यान इतनी चतुराई के साथ पवित्र ‘सेंगोल’ अथवा ‘राजदंड’ विवाद में जोत दिया गया कि किसी ने पूछा ही नहीं कि नए संसद भवन में लोकसभा में बैठने के लिए सीटों की संख्या 543 से बढ़ाकर 888 और राज्य सभा की 245 (250) से बढ़ाकर 384 करने के पीछे मंतव्य क्या हो सकता है ? इन बढ़ी हुई सीटों का 2024 के चुनावों से क्या संबंध माना जाए ?

 

जो गतिविधियां इस समय मौन रूप से चल रहीं हैं उन पर गौर किया जाए तो विधानसभा चुनावों में लगातार हो रही पराजयों के बीच भाजपा सरकार का अचानक से प्रेम देश की महिलाओं को लोकसभा में आरक्षण प्रदान करने के प्रति जाग उठा है ! क्या अचंभा नहीं व्यक्त किया जाना चाहिए कि मोदी सरकार का यह प्रेम तब जगा है जब नए चुनाव होने जा रहे हैं ! पिछले नौ सालों में इस सिलसिले में पत्ता भी नहीं हिला ! कोई तो कारण होगा ! चर्चा है कि साल 2010 से (या उसके भी पहले से ) लंबित महिला आरक्षण विधेयक अब पेश किया जा सकता है !

 

गौर करने की बात यह हो सकती है कि चूँकि पुराना विधेयक तब की संसद के अवसान के साथ लैप्स हो चुका है, नया विधेयक संभवतः पुराना वाला नहीं होगा। यानी महिलाओं को आरक्षण दिया जाना तो प्रस्तावित होगा पर न तो वर्तमान की 543 सीटों में से ही एक तिहाई पर और न ही पूर्व में सुझाई गई प्रक्रिया (यानी ‘आरक्षित सीटों का राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय-रोटेशनल-आधार पर आवंटन’ ) के अनुसार।

 

गणित समझाया जा रहा है कि 2024 के चुनावों में भाजपा की सीटें अगर कम भी हो जाएँ पर उसका वोट शेयर 2019 वाला ही क़ायम रहे तब भी महिला आरक्षण सरकार की सत्ता में वापसी करा देगा। कैसे ? बताया जाता है कि 543 सीटों पर तो चुनाव पूर्व की तरह होंगे पर लोकसभा में महिलाओं के लिए 280 नई सीटें जोड़ दी जाएँगी। इन 280 पर चुनाव नहीं होंगे।लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दलों को राज्यों में जो भी वोट शेयर प्राप्त होगा उसी के अनुपात में (आनुपातिक प्रतिनिधित्व) उन दलों की महिलाओं को इन 280 सीटों में से स्थान मिल जाएगा। इसके लिए प्रत्येक दल को 280 महिलाओं की सूची प्राथमिकता के क्रम में सौंपनी होगी।

 

मतलब यह कि राजद ,जद(यू) ,सपा आदि दल अगर चाहेंगे तो वोट शेयर के आधार पर मिलने वाली अपनी कुछ या सभी सीटें पिछड़ी जाति की महिलाओं को दे सकेंगे। स्मरण दिलाया जा सकता है कि पिछले विधेयक का सबसे मुखर विरोध लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और नीतीश कुमार के जद(यू) ने पिछड़ी जाति की महिलाओं के हितों को मुद्दा बनाकर किया था।

 

जिस तरह का तर्क भाजपा के क्षेत्रों में चर्चा में है उसके अनुसार ,1984 के चुनावों में भाजपा को सीटें चाहे दो ही मिली थीं , वोट शेयर के मामले में कांग्रेस के बाद वही थी। कांग्रेस का 404 सीटों के साथ वोट शेयर 49.10 प्रतिशत था जबकि भाजपा का दो सीटों के बावजूद 7.74 प्रतिशत। (भाजपा तब 96 सीटों पर पार्टी दूसरे क्रम पर रही थी। इनमें से 84 पर भाजपा ने 1989 में जीत प्राप्त कर ली थी।) तर्क यह है कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर महिला आरक्षण होता तो 1984 में भाजपा की सीटें कहीं ज़्यादा होतीं।

 

जो तर्क भाजपा की खुशहाली के संदर्भ में दिया जा रहा है वही कांग्रेस को खुश करने के लिए भी बाँटा जा रहा है। समझाया जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 37.35 प्रतिशत वोट शेयर पर 303 सीटें मिलीं थीं जबकि 19.49 प्रतिशत वोट शेयर प्राप्त कर दूसरे क्रम पर रहने के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ़ 52 ही सीटें प्राप्त हुईं। अगर आनुपातिक प्रतिनिधित्व के साथ महिला आरक्षण होता तो कांग्रेस की सीटें भी बढ़ जातीं और उसे विपक्ष का नेता बनने का हक़ भी मिल जाता।

उपसंहार में यही कहा जा सकता है कि भाजपा मानकर चलने लगी है कि 2024 में उसकी सीटें काफ़ी कम होने वाली हैं पर उसे यक़ीन है उसका वोट शेयर (कर्नाटक की तरह) पूर्ववत रहेगा। महिला आरक्षण के ज़रिए लंबे समय के लिए उसकी सरकार में वापसी हो सकती है।

देखना यही रह जाता है कि महिला आरक्षण विधेयक अब किस शक्ल में पेश होता है ! कृषि क़ानून विधेयक का स्मरण कीजिये।अमित शाह की चेतावनी और जाँच एजेंसियों की क्षमताओं का ध्यान कीजिए और अंत में ‘मन की बात’ सुनिए कि सत्ता में वापसी के लिए मोदी क्या-क्या कर सकते हैं ? क्या विपक्षी पार्टियाँ सरकार के विधेयक का समर्थन कर देंगी ? नहीं करेंगी तो देश की राजनीतिक परिस्थितियां क्या बनेंगी ? सोचकर यह भी देखिए कि लाड़ली-बहनों की उपस्थिति से उज्जवल 823-सदस्यीय नई लोकसभा कैसी नज़र आने वाली है ?