भारत में एक साल में 500 करोड़ एंटीबायोटिक टैबलेट्स खरीदी गईं, बिना सोचे-समझे दवा ले रहे लोग


शोध में पता चला है कि भारत में साल 2019 में जिन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया गया, उनमें सबसे अधिक (7.6 प्रतिशत) एजिथ्रोमाइसिन 500 एमजी गोली इस्तेमाल की गई।


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नई दिल्ली। कोरोना महामारी हो या उससे पहले के हालात, भारत में एंटीबायोटिक दवाओं की खरीददारी काफी ज्यादा ही थी।

लैंसेट रीजनल हेल्थ साउथ ईस्ट एशिया जर्नल में प्रकाशित एक हालिया शोध में बताया गया है कि 2019 में देश में 500 करोड़ एंटीबायोटिक टैबलेट्स इस्तेमाल में लाई गईं। इनमें से कई दवाएं ऐसी हैं, जिन्हें केंद्रीय औषधि नियंत्रक से मंजूरी भी नहीं मिली है।

शोधकर्ताओं ने प्राइवेट सेक्टर के ड्रग सेल्स डेटाबेस PharmaTrac के डेटा का विश्लेषण किया जिसके लिए नौ हजार विक्रेताओं से इकट्ठा किया गया था।

इसके बाद शोधकर्ताओं ने कई श्रेणियों में एंटीबायोटिक दवाओं की प्रति व्यक्ति निजी क्षेत्र की खपत की गणना करने के लिए डिफाइनन्ड डेली डोज (DDD) मेट्रिक्स का इस्तेमाल किया। किसी भी ड्रग को कंज्यूम करने के लिए उसकी एक औसत डोज तय की जाती है, जिसे DDD कहते हैं।

शोध के निष्कर्षों से पता चलता है कि 2019 में वयस्कों के बीच डिफाइन्ड डेली डोज (प्रतिदिन डोज की दर) 5,071 मिलियन रही। शोध के अनुसार भारत में 47.1 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाओं को बिना केंद्रीय औषधि नियंत्रक की मंजूरी के इस्तेमाल किया गया।

शोध में पता चला है कि भारत में साल 2019 में जिन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया गया, उनमें सबसे अधिक (7.6 प्रतिशत) एजिथ्रोमाइसिन 500 एमजी गोली इस्तेमाल की गई। इसके बाद (6.5 प्रतिशत) सेफिग्जाइम 200एमजी गोली का उपयोग किया गया।

अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नयी दिल्ली के शोधकर्ताओं ने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की समीक्षा की। भारत में 85 से 90 प्रतिशत तक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

इस दौरान लगभग 5000 दवा कंपनियों के उत्पाद रखने वाले 9 हजार स्टॉकिस्ट से डेटा एकत्र किया गया। इन आंकड़ों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से दी जाने वाली दवाएं शामिल नहीं थीं।

हालांकि इस शोध और राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के अनुसार देश में जितनी भी दवाएं बेची जाती हैं, उनमें इनका हिस्सा 15 से 20 प्रतिशत से भी कम है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले अनुमानों की तुलना में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत की दर में कमी आई है, लेकिन बैक्टीरिया से होने वाले विभिन्न रोगों से व्यापक रूप से लड़ने वाली एंटीबायोटिक दवाओं का अपेक्षाकृत काफी अधिक इस्तेमाल हुआ है।

यशोदा हॉस्पिटल्स हैदराबाद के कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबेटोलॉजिस्ट डॉ. हरि किशन बूरुगु बताते हैं कि

हमारे देश में एंटिबायोटिक दवाओं के उपयोग की निगरानी करने के लिए उचित निगरानी प्रणाली नहीं है और बड़े पैमाने पर इन दवाओं का बिना सोचे समझे उपयोग किया जा रहा है। समस्या कई स्तरों पर है। इनमें बिना डॉक्टर की सलाह के रोगियों द्वारा एंटीबायोटिक का उपयोग, नीम हकीमों और यहां तक की कुछ योग्य डॉक्टरों द्वारा भी एंटीबायोटिक दवाओं के गैर जरूरी उपयोग की अनुमति देना शामिल है।

रिसर्च में शामिल दवाओं में से केवल 45.5% दवाएं सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के नियमों को फॉलो करती हैं। कंपनियां राज्यों से बिना केंद्रीय रेगुलेटर की इजाजत के ही लाइसेंस प्राप्त कर लेती हैं। इस तरह फंसने वाला पेंच देश में एंटीबायोटिक्स की उपलब्धता और बिक्री को और उलझा देता है।



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