सरकार के हवा-हवाई वादों से नाराज किसान संगठन 19 दिसंबर को फिर से करेंगे आवाज बुलंद


19 दिसंबर को एक ओर जहां भारतीय किसान संघ आंदोलन कर रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत के 33 किसान संगठन भी फिर से दिल्ली में डेरा डालने और सीमाएं सील करने के मूड में नजर आ रहे हैं।


डॉ. संतोष पाटीदार डॉ. संतोष पाटीदार
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इंदौर। संसद के शीतकालीन सत्र में एक बार फिर देश के किसानों के विषय पर सरकार से जवाब मांगे जाएंगे। बीते साल इसी संसद में प्रकाश पर्व के बहाने तीन नए कृषि कानूनों को किसानों के तगड़े विरोध के बाद वापस लिया गया था।

सरकार को नींद से जगाने के लिए संसद में विराजमान सांसदों के माध्यम से किसानों की आवाज उठाने के साथ दिल्ली के रामलीला मैदान पर किसान अपनी ताकत दिखाएंगे।

संसद सत्र के साथ सरकार के बजट पेश करने की भी तैयारियां चल रही हैं। यह वक्त किसानों की आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए मुफीद है। इस लिहाज से अगले हफ्ते देशभर से हजारों किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं। इसका सिलसिला अभी से शुरू हो गया है।

किसानों को सरकारें हमेशा आंदोलन के लिए मजबूर करने और फिर किसानों की मांगों पर हवाई घोषणाएं करने की राजनीति करती हैं।

हमेशा की तरह घोषणाओं में गुम होते सरकारी वादों की तलाश करते-करते थके हारे किसान सरकार से अब आमना-सामना कर दो टूक जवाब मांगेंगे।

खेती किसानी की मांगों को लेकर कोई सुनवाई नहीं होने से आक्रोशित किसानों ने केन्द्र सरकार को घेरने की तैयारी कर ली हैं।

19 दिसंबर को एक ओर जहां भारतीय किसान संघ आंदोलन कर रहा है वहीं दूसरी ओर उत्तर भारत के 33 किसान संगठन भी फिर से दिल्ली में डेरा डालने और सीमाएं सील करने के मूड में नजर आ रहे हैं।

खेती के तीन नए कानूनों के सशर्त रद्द होने के बाद सरकार द्वारा किए वादों का हिसाब-किताब अब तक नहीं देने से ये किसान संगठन नाराज हैं।

खबर यह भी है कि हरियाणा और यूपी के गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया शक्कर मिलों द्वारा नहीं दिया गया है। गत वर्ष का करोड़ो रुपये का भुगतान अब तक नहीं होने से हजारों किसान नाराज हैं।

सबसे ज्यादा बकाया यूपी में है। हरियाणा की भी ऐसी ही स्थिति है। इस तरह की खबरें किसानों में आक्रोश पैदा किए हुए हैं।

इस सबके बीच भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में 19 दिसंबर को लाखों की संख्या में किसान दिल्ली में डेरा डालने जा रहे हैं।

बाकायदा आंदोलन करने वालों के मोबाइल फोन की कॉलर ट्यून में मोदी जी हम दिल्ली आ गए हैं… का गीत बजने लगा है। यह बताता है कि किसान बड़ी तैयारी के साथ सरकार को घेरने का मन बना चुके हैं।

दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 हजार किसानों के ठहरने की व्यवस्था की जा रही है। यहां लाखों किसानों का प्रर्दशन, धरना और सभा का आयोजन होगा।

इसके लिए संघ ने वहां भूमि पूजन किया है। भारतीय किसान संघ ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की बजाय फसल का लाभकारी मूल्य देने का बेहतर फॉर्मूला पेश करते हुए इसे कानूनी रूप से लागू करने की मांग की है।

किसान संघ खेती की उपज का पूर्ण लाभकारी मूल्य मिलने की गारंटी की मांग पर अडिग है। दूसरी प्रमुख मांग भूमि अधिग्रहण कानून को सरकारों ने अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ कर राज्यों के लिए लचीला बना दिया है इसलिए ये किसान विरोधी प्रावधान खत्म किए जाएं। उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण को भी नियंत्रित किया जाए। इस तरह की अन्य प्रमुख मांगों को लेकर किसान मैदान में उतरे हैं।

संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री महेश चौधरी की अगुआई में एमपी से लगभग 50 हजार किसान दिल्ली जा रहे हैं। मालवा प्रांत के संगठन मंत्री अतुल माहेश्वरी ने बताया कि भारतीय किसान संघ की 8-9 अक्टूबर को दिल्ली में हुई अखिल भारतीय प्रबंध समिति की बैठक हुई थी।

बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर खेती की समस्याओं के समाधान पर विचार-विमर्श किया गया। खेती के लिए बीज, खाद, दवाई, मजदूरी आदि महंगे होते जा रहे हैं इसलिए खेती में उत्पादन लागत यानी खेती का खर्च बढ़ गया है।

इस लागत खर्च से नीचे फसल बिकने से किसानों को भारी नुकसान होता है। नतीजे मे किसान कर्ज लेता है। इन गंभीर समस्याओं को लेकर किसान संघ की बैठक में चिंतन किया गया।

बैठक के बाद तय किया कि राज्यों और केन्द्र सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जाए। केंद्र सरकार को किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कई वर्षों से बार-बार अवगत कराया जा रहा है।

जैसा होता है अनुकूल नतीजा नहीं निकला इसलिए सरकारों को जगाने के लिए किसान गर्जना रैली की घोषणा की गई। महेश चौधरी ने बताया कि भारतीय किसान संघ किसानों को खेती में होने वाले खर्च की लागत पर आधारित लाभकारी मूल्य दिलाने को लेकर लगातार आंदोलनरत है।

सन 2013 में दिल्ली में आयोजित किसान अधिकार रैली के बाद देश की राष्ट्रीय पार्टियों ने किसानों को लाभकारी मूल्य देने को लेकर घोषणा-पत्र जारी किए थे।

संगठन की ओर से 2015 में देश भर के लोकसभा व राज्यसभा के सांसदों को उनके संसदीय क्षेत्र में ज्ञापन दिए। संसद में खेती-किसानी का लाभकारी मूल्य दिलाने की मांग सांसदों के माध्यम से रखने के प्रयास हुए।

माहेश्वरी कहते हैं कि किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य के बजाय फसलों के उत्पादन में होने वाले कुल औसत खर्च की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य की मांग कर रहा है क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य फसलों की पैदावार की वास्तविक लागत से बहुत दूर है।

समग्र कृषि खर्च के लिहाज से न्यूनतम समर्थन मूल्य किसान के लिए फायदेमंद नहीं हैं जबकि लाभकारी मूल्य में किसान द्वारा लगाई गई पूंजीगत लागत पर ब्याज, मशीनरी के मूल्यह्रास, किसान के परिश्रम अनुसार मेहनताना शामिल हैं।

इस तरह फसल उत्पादन के कुल खर्च की लागत की गणना करके उस पर 50 प्रतिशत लाभांश जोड़कर कर लाभकारी मूल्य की गणना है।

किसान संघ इस मांग को लंबे समय से उठा रहा है। गर्जना रैली के द्वारा केंद्र सरकार से फिर खेती-किसानी की मांगें मंजूर करने की मांग की जाएगी। सरकार से लाभकारी मूल्य घोषित किए जाने की मांग प्रमुख है।

माहेश्वरी और इंदौर महानगर किसान संघ के अध्यक्ष दिलीप मुकाती ने बताया कि हमारी यह भी मांग है कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सुनियोजित ढंग से किए गए किसान विरोधी प्रावधानों को खत्म किया जाए।

इसी तरह किसान को फसल उत्पादक होने के बावजूद किसानों को जीएसटी का इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता है इसलिए किसान गर्जना रैली में कृषि आदानों पर से जीएसटी खत्म करने की मांग भी कर रहे हैं।

खरगोन क्षेत्र के किसान संघ के जिला अध्यक्ष सदाशिव पाटीदार और श्याम सिंह पंवार कहते हैं कि बढ़ती महंगाई व मुद्रास्फीति के अनुसार किसान सम्मान निधि राशि में भी बढ़ोतरी होनी चहिए।

विकास के नाम पर कृषि भूमि के अधिग्रहण की मनमानी बंद होनी चाहिए और फसलों को नुकसान कर रहे जंगल के जानवरों के नियंत्रण के लिए वन पर्यावरण संगत नीति बनाने के साथ नुकसान का मुआवजा दें या खेतों की फेंसिंग के लिए अनुदान दिया जाए। फेंसिंग से फसल, नील गाय से लेकर जंगली सुअरों से सुरक्षित हो जायेगी।

दूसरी ओर दिल्ली में कोरोना और कड़कड़ाती ठंड में केंद्र सरकार के लागू किए तीन नए कृषि कानूनों को समाप्त कराने के लिए करीब डेढ़ साल आंदोलन करने वाले किसान संगठनों के संयुक्त किसान मोर्चा में भी दिल्ली को फिर से घेरने की हलचल शुरू हो गई है।

दुनिया भर में इस आंदोलन का हल्ला मचा और तमाम तरह के षड्यंत्रों के बावजूद सरकार को कानूनों को वापस लेना पड़ा था। आंदोलनकारियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार से सहमत होने की मांग रखी थी।

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा संसद में करने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया था।

साथ ही यह भी कहा था कि सरकार ने हमारी मांगें नहीं मानीं तो फिर आंदोलन शुरू हो सकता है। बीती 1 दिसंबर को मोर्चा ने आंदोलन का एक साल पूरा होने पर अपनी मांगें दोहराईं और सरकार पर धोखा देने का आरोप लगाया है।



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