घोटाले में घोटाला! 21 में से 16 चयनित पटवारी एक ही जिले, तहसील और जाति से, सभी एक ही अंग से दिव्यांग


शिक्षक भर्ती परीक्षा में भी मुरैना के दिव्यांगों ने किया था अच्छा प्रदर्शन, जांच हुई तो 78 के खिलाफ हो गई एफआईआर


DeshGaon
भोपाल Updated On :

पटवारी परीक्षा में एक सेंटर की ही गड़बड़ी अब तक सामने आई है लेकिन ये मामला इससे कहीं बड़ा नजर आता है। प्रदेश भर में ऐसे करीब दस से अधिक सेंटर बताए जा रहे हैं। इसके साथ ही अब दिव्यांगों का घोटाला सामने आ रहा है। जिसमें दस से ज्यादा चयनित एक ही तरह की दिव्यांगता वाले मिले हैं। इन सभी के कान खराब हैं और एक दूसरी बात यह कि इन सभी का उपनाम भी एक ही है। दरअसल ये अभ्यर्थी त्यागी सरनेम वाले हैं और सभी मुरैना की जौरा तहसील के रहने वाले हैं। यहां त्यागी समाज की संख्या अच्छी है।

मुरैना के एक अन्य दिव्यांग अभ्यर्थी नाम प्रकाशित न करने के आगृह पर बताते हैं कि यह दिव्यांग उम्मीदवारों के साथ पूरी तरह अन्याय है और इसमें खुद शासकीय अधिकारी ही शामिल हैं। इन अभ्यर्थी ने बताया कि जिले में दस से बीस हजार रुपये में सामान्य व्यक्ति को दिव्यांगता का प्रमाण पत्र जारी किया जा सकता है। इसमें पूरा बोर्ड शामिल होता है जिसमें मेडिकल अधिकारी और सभी विशेषज्ञ डॉक्टर तथा सीएमएचओ भी शामिल होते हैं।

जानकारी के मुताबिक ये सभी प्रमाणपत्र भर्ती तरीके से बनाए गए हैं और इन्हें कोरोना काल के दौरान बनाया गया है। मुरैना के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक जिले में इस तरह के फर्जी प्रमाणपत्र अब भी बनते हैं लेकिन स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इन पर कोई कार्रवाई नहीं करते।

मुरैना के सिविल सर्जन डॉ. जीएस तंवर कहते हैं कि पटवारियों की भर्ती के बारे में उनके पास कोई जानकारी अब तक नहीं आई है हां शिक्षकों के बारे में जांच जारी है। वे बताते हैं कि नौकरी ज्वाइन करने के बाद दिव्यांगता के प्रमाणपत्रों की जांच होती है इसी आधार पर चीजें स्पष्ट होंगी।

उल्लेखनीय है कि कर्मचारी चयन मंडल ने प्राथमिक शिक्षक के 18 हजार पदों के लिए पात्रता परीक्षा कराई थी। इसमें 1086 पद दिव्यांगों के लिए आरक्षित थे। रिजल्ट के  आधार पर 755 पदों पर आवेदकों का चयन हुआ है और इनमें से  450 दिव्यांग शिक्षक केवल मुरैना जिले के हैं।  इनमें से करीब 78 की जांच हो चुकी है और फर्जी पाए गए। इन पर एफआईआर के आदेश दिए जा चुके हैं लेकिन इसके बाद से जांच आगे नहीं बढ़ी है। लालच में फसे इन अभ्यर्थियों पर इतना दबाव था कि दो ने तो नौकरी ही छोड़ दी है। बताया जाता है कि फर्जी दिव्यांगों की संख्या इससे कहीं अधिक है लेकिन यह राजनीतिक दबाव में रोक दी गई।



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