महू के योगेश गर्ग हत्याकांड के सभी आरोपी बरी, पुलिस के दिए गए सुबूत रहे नाकाफी


तत्कालीन डीआईजी का बयान भी बना वजह, कोर्ट ने साक्ष्यों को कमजोर पाया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया


DeshGaon
इन्दौर Updated On :
yogesh garg murder case

इंदौर। महू के चर्चित योगेश गर्ग हत्याकांड में आरोपी मांगीलाल ठाकुर सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। वकील योगेश गर्ग की हत्या 18 नवंबर 2015 को हुई थी।

इस अपराध के आरोप में सावन खोड़े और विकास चौहान को मुख्य आरोपी बनाया गया था वहीं मांगीलाल ठाकुर को इस मामले में साज़िशकर्ता माना गया था।

बुधवार को महू कोर्ट ने इस मामले में सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने 75 पेज के आदेश में कोर्ट ने पुलिस के द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों को आरोपियों को दोषी साबित करने में नाकाफी बताया है।

इसके बाद यह अब भी तय नहीं हुआ है कि योगेश गर्ग की हत्या किसने की।

बचाव पक्ष के वकील विक्रम दुबे ने बताया कि पुलिस की थ्योरी पर कोर्ट ने अविश्वास जताया है और पुलिस ने जो साक्ष्य प्रस्तुत किए थे वह घटना की कड़ी से कड़ी जोड़ने में नाकाम रहे हैं।

घटना के बाद से ही मांगीलाल ठाकुर के साथ सावन खोड़े और विकास चौहान और सुरेश जबलपुर, इंदौर और सागर जेल में हैं। ये सभी लोग आरोपी के रुप में लंबे समय तक जेल में रहे हैं।

आरोपी मांगी लाल वकील विक्रम दुबे के साथ कोर्ट से निकलते हुए

महू कोर्ट से फैसला आने के बाद से ही कोर्ट के बाहर जश्न का माहौल बन गया। हालांकि इससे पहले ही यहां मांगीलाल ठाकुर के सर्मथकों का जुटना शुरू हो चुका था। ये सर्मथक तैयारियों के साथ पहुंचे, लेकिन बाद में कुछ खास जश्न नहीं हुआ।

वकील विक्रम दुबे ने बताया कि घटना के बाद तत्कालीन इंदौर डीआईजी संतोष कुमार सिंह ने प्रेस वार्ता में बताया कि आरोपियों से वाहन, मोबाइल, घटना में प्रयोग किया गया रिवाल्वर 24 नवंबर को जब्त की थी, लेकिन इसका मेमोरेंडम चालान में पेश नहीं किया और यह बाद में 25 नवंबर को दिखाया गया।

यह जब्तियां 25, 26 और 27 को बताईं। पुलिस की ओर से यह गंभीर चूक रही जो आरोपियों के पक्ष में रही। वहीं देशी और अंग्रेजी पिस्तौल के बारे में भी दर्ज ब्यौरा सही नहीं था।

ब्यौरे में जांच अधिकारी ने शॉट गन की गोली से हमला करने की बात लिखी जो गलत थी क्योंकि गोली देसी पिस्तौल से चली थी। वहीं डॉक्टर ने गोली के बारे में लिखा कि गोली रायफल से चली है लेकिन बैलेस्टिक एक्सपर्ट ने इसे नकार दिया। डिजिटल एविडेंस के प्रमाण पत्र भी सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किए गए।

सीआरपीसी 100 और 155 के तहत गवाह मौके पर मौजूद लोगों को होना चाहिए लेकिन पुलिस ने इस मामले में एक गवाह अमेरिका में रहने वाले योगेश गर्ग के भाई जयेश गर्ग को बनाया और दूसरा गवाह उस समय मुंबई में रहने वाले उनके साले मयंक को बनाया।

पुलिस ने गवाहों के बयान केस डायरी में संक्षेप में लिखे जिसमें किसी भी तरह से खुलकर मांगीलाल के खिलाफ कुछ नहीं कहा गया। उस समय जमीनी झगड़े का कोई मामला खुलकर नहीं लिखा गया था।

इस हत्याकांड से नाराज होकर वकीलों ने हड़ताल कर दी जिस पर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया। इसके बाद अगले महीने महू के डीएसपी डीएसपी अरुण मिश्रा ने हाईकोर्ट को जवाब दिया कि बयानों में अब तक परिवार ने खुलकर किसी वजह पर बात नहीं की है।

इस मामले में फैसले के खिलाफ अपील करना अब पुलिस का काम है। जानकारों के मुताबिक योगेश गर्ग का परिवार इस मामले में आगे अपील कर सकता है, लेकिन यहां पुलिस का साथ होना जरुरी होगा।

लेकिन, पुलिस ऐसा करेगी कि नहीं यह कहना अभी मुश्किल है क्योंकि कोर्ट ने यह मामला एक तरह से खारिज कर दिया है क्योंकि मामले में पुलिस की ही गलतियां दिखाई दे रहीं हैं।



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