क्या 13 अप्रैल यूपी के भाग्य का टर्निंग प्वाइंट साबित होगा?


पिछले लगभग 44 साल से पूर्वांचल में आतंक का दूसरा नाम बन चुके अतीक और उसके गैंग से भिड़ने की कोशिश पुलिस या प्रशासन तो दूर सरकारें भी नहीं कर पाईं।


asad ahmed encounter

प्रयागराज सहित उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए 13 अप्रैल 2023 की तारीख को आने वाले कई दशकों तक याद किया जाएगा। यह तारीख यूपी के इतिहास में दर्ज हो गई है क्येांकि, इसी दिन पांच बार के विधायक और एक बार सांसद रह चुके अतीक अहमद के बेटे असद को यूपी एसटीएफ ने एनकाउंटर में मार गिराया।

असद पर अधिवक्ता उमेश पाल सहित यूपी पुलिस के दो जवानों की हत्या का आरोप था। यह कोई साधारण हत्याकांड नहीं था। एनकाउंटर से ठीक 48 दिन पहले असद ने अपने गैंग के साथ बीच शहर में अधिवक्ता उमेश पाल सहित दो पुलिसवालों को बेरहमी से कत्ल कर दिया था। तीन में से दो को भीड़ के सामने दौड़ा-दौड़ा कर बम और गोलियां मारी गईं थीं।

हमालावरों को यह अच्छी तरह से पता था कि यह पूरी वारदात सीसीटीवी और न जाने कितने लोगों के मोबाइल कैमरों में कैद हो रही है। इसके बावजूद किसी भी हमलावर ने अपने मुंह पर कोई नकाब या मास्क नहीं लगा रखा था। इरादा साफ था।

असद अपने पिता अतीक अहमद के घटते आतंक और खौफ के साम्राज्य को फिर से स्थापित करना चाहता था। वह चाहता था कि प्रयागराज सहित पूरे देश को यह पता चले कि अतीक अहमद भले ही जेल में है लेकिन, उसके खिलाफ अगर किसी ने आवाज उठाने या खड़े होने की कोशिश की तो अंजाम ऐसा ही होगा।

अतीक या उसके गुर्गों ने कोई पहली बार ऐसी वारदात को अंजाम नहीं दिया था। 18 साल पहले 25 जनवरी 2005 को बिलकुल इसी तरह प्रयागराज में एक विधायक की दिनदहाड़े दौड़ा-दौड़ा कर हत्या की गई थी। विधायक का नाम राजू पाल था। उसका अपराध बस इतना था कि उसने अतीक के भाई अशरफ के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिमाकत की थी। राजू पाल चुनाव तो जीत गया लेकिन, तीन महीने के अंदर वह जिंदगी हार बैठा। हत्या से नौ दिन पहले राजू पाल की पूजा पाल से शादी हुई थी।

पिछले लगभग 44 साल से पूर्वांचल में आतंक का दूसरा नाम बन चुके अतीक और उसके गैंग से भिड़ने की कोशिश पुलिस या प्रशासन तो दूर सरकारें भी नहीं कर पाईं। अतीक और उसके गुर्गों को पता था कि सरकारें आती-जाती रहेंगी लेकिन, आतंक के उसके साम्राज्य को हाथ लगाने की हिम्मत किसी में नहीं है। इस बार उनका यह आत्मविश्वास ही उनके लिए काल बन गया।

24 फरवरी 2023 को जिस वक्त उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम दिया जा रहा था उसी समय लखनऊ में विधानसभा का सत्र चल रहा था। अगले दिन 25 फरवरी को विपक्ष ने इस मामले पर सरकार को घेरने की कोशिश की। सरकार के मुखिया और सीएम योगी आदित्यनाथ ने सदन में यह घोषणा कर दी कि इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे। शायद 25 फरवरी का ही वह दिन था जब अतीक और उसके आतंक के साम्राज्य को मिटा देने की इबादत लिखी जानी शुरू हो गई थी।

विधानसभा में मुख्यमंत्री की घोषणा के डेढ़ महीने के भीतर अतीक को उमेश पाल अपहरण केस में आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई गई। 13 अप्रैल को एक बार फिर अतीक और उसके भाई अशरफ को प्रयागराज के सीजीएम कोर्ट में पेश किया जा रहा था। पुलिस ने दोनों को उमेश पाल हत्याकांड में आरोपी बनाया था।

पूरे देश का मीडिया अतीक और उसके भाई की पेशी को लाइव दिखा रहा था। तभी खबर आई कि उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी और अतीक के बेटे अशरफ और शूटर गुलाम को पुलिस ने एनकाउंटर में ढेर कर दिया है। इस खबर के आते ही प्रयागराज में मौजूद वकीलों की भीड़ और लोगों में भावनाओं का गुबार फूट पड़ा। ऐसा लगा जैसे लोगों को बस इसी खबर का इंतजार था।

आखिर यह खबर इतनी महत्वपूर्ण क्यों हो जाती है? क्या यूपी में पहली बार किसी अपराधी का एनकाउंटर हुआ है? फिर इतना हंगामा क्यों? इसकी कई वजहें हैं…

पहली वजह –
यूपी की आम जनता ने लगभग यह मान लिया था कि अब उन्हें इस माफिया और इसके आतंक में ही जीने की आदत डालनी होगी। सरकारें आती-जाती रहेंगी लेकिन, इसे रोकना अब किसी सरकार या पुलिस के बस की बात नहीं है।

आम जनता का पुलिस और सरकार से भरोसा उठ चुका था। ऐसे में 20 दिन के अंदर दो ऐसी खबरें सुनाई देती हैं, तो लोगों का चैांकना स्वाभाविक है। वह अतीक अहमद जिसके सामने खड़े होने से पुलिसवाले भी खौफ खाते हों उसे और उसके पूरे परिवार को घुटने टेकता देखना किसी सपने के सच होने जैसा था।

दूसरी वजह –
यूपी में अपराध और राजनीति के गठबंधन को सियासत की कुंजी मान लिया गया था। आम जनता इस सच्चाई को स्वीकार कर चुकी थी। इस गठजोड़ के खत्म होने की उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं।

ऐसे में पहले विकास दुबे फिर अतीक अहमद को सजा और अब असद का एनकाउंटर एक बार फिर से लोगों में यह उम्मीद पैदा करता है कि शायद अब राजनीति और अपराध का गठजोड़ टूट रहा है।

तीसरी वजह –
कानून का राज कम से कम यूपी की जनता के लिए एक किताबी जुमला भर बन कर रह गया था। यहां के लोग मान चुके थे कि राज तो उसका होता है जिसके हाथ में पिस्तौल होती है। इसका जीता-जागता सबूत अतीक और उसका गैंग था।

उमेश पाल हत्याकांड के बाद अतीक और उसके गैंग के खिलाफ होने वाली कार्यवाहियों ने लोगों का यह भ्रम तोड़ दिया। अब उन्हें यह यकीन होने लगा है कि कोई भी माफिया या गुंडा अगर कानून को हाथ में लेने की कोशिश करेगा तो उसका हश्र अतीक जैसा होगा।

चौथी वजह –
अतीक जैसे माफियाओं के बढ़ते वर्चस्व और पुलिस की भूमिका ने आम जनता में यूपी पुलिस की छवि को मटियामेट कर दिया था। 13 अप्रैल की घटना के बाद आम जनता में न सिर्फ पुलिस का इकबाल लौटा है, बल्कि उमेश पाल के साथ शहीद हुए दो पुलिसकर्मियों को उनके बलिदान का सही सम्मान भी हासिल हुआ है।

पांचवीं वजह –
उमेश पाल हत्याकांड के 48 दिन के अंदर जिस तरह से यूपी पुलिस और न्यायपालिका ने सख्त और त्वरित कार्यवाही की है वह निश्चित ही उत्तर प्रदेश की छवि को बदलने वाली घटना साबित हो सकती है।

इन अपराधियों और दिनदहाड़े होने वाली अपराध की घटनाओं के ही कारण यूपी और बिहार का नाम पूरे देश में बदनाम है। एक जमाने में मुंबई और पंजाब की भी ऐसी ही छवि बन चुकी थी। अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही ने अंततः मुंबई और पंजाब को आतंकियों और अलगाववादी ताकतों से मुक्त कराया था। क्या अब उत्तर प्रदेश का नंबर है?

दुनिया में केवल चार ऐसे देश हैं जिनकी आबादी यूपी से ज्यादा है। यानी, एक प्रदेश होने के बावजूद उत्तर प्रदेश दुनिया का पांचवां सबसे बड़ी आबादी वाला भू-भाग है। इतनी बड़ी आबादी को अपराध, अपराधियों और भय से मुक्त करने से केवल यूपी का ही नहीं, दुनिया की एक बड़ी आबादी का भला किया जा सकता है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति सबसे जरूरी है। देखना होगा कि अब अगले कितने दिनों या सालों तक यूपी में 13 अप्रैल की धमक बनी रहती है।