छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, नरेन्द्र मोदी से भिड़ने जा रहे हैं


छत्तीसगढ़ में मुकाबला भूपेश बनाम मोदी होने जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को लग रहा है कि पार्टियां लड़ रही हैं, मगर हकीकत इससे सर्वथा भिन्न है।


आवेश तिवारी
छत्तीसगढ़ Updated On :

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल, नरेन्द्र मोदी से भिड़ने जा रहे आज गुरुवार का दिन है, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कई दिनों की बारिश के बाद आज धूप खिली है। राजनैतिक पारा भी बढ़ा हुआ है। राज्य में आज कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दोनों का दौरा है। रायपुर, भिलाई और बिलासपुर की सड़कों को देखकर लगता है कि चुनावी मौसम आ गया है लेकिन ग्रामीण इलाकों में कोई सरगर्मी नहीं है। इधर रायपुर की सड़कों पर आज बारावफात का जुलूस निकला है जो उसी रास्ते से गुजर रहा है, जिस रास्ते पर दोनों तरफ गणेश प्रतिमाएं रखी हैं। मगर न तो हवा में कोई बैचैनी है न ही जुलूस की सुरक्षा में लगे चंद पुलिसकर्मियों की पेशानी पर कोई शिकन नजर आ रही है।

दरअसल, प्रदेश के मतदाताओं के चेहरे से भी वह बैचैनी गायब है जो तब दिखती है जब वह सत्ता परिवर्तन पर आमादा होते हैं। यह बैचैनी विपक्षी भाजपा के नेताओं के चेहरे से भी नदारद है। यह ग़जब का चुनाव है जब करो या मरो का नारा न तो सत्ता पक्ष के भीतर जाग रहा है न विपक्ष के भीतर। छत्तीसगढ़  आगामी विधानसभा चुनाव दरअसल वह मैदान है, जिसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने गर कोई खिलाड़ी है तो वह केवल मोदी है।

 

यह कांग्रेस और भाजपा की जंग नहीं है

छत्तीसगढ़ में मुकाबला भूपेश बनाम मोदी होने जा रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों को लग रहा है कि पार्टियां लड़ रही हैं, मगर हकीकत इससे सर्वथा भिन्न है। यह दो व्यक्तियों के बीच का युद्ध है। यह एक किसान मुख्यमंत्री का हिंदुत्व के संरक्षक प्रधानमंत्री के बीच होने वाला रण है। यह सुनने में अटपटा लगेगा मगर यही सच है यह कहने में कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि 2014 के बाद भले चार साल रमन सिंह मुख्यमंत्री रहे हों लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार उस वक्त भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इशारे पर ही चल रही थी। 2018 में भाजपा की हार की बड़ी वजहों में सबसे बड़ी यह थी कि मोदी ने आते ही 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के घोषणापत्र में निहित वादों को पूरा करने से डॉ रमन सिंह को रोक दिया। भले वह किसानों को बोनस देने का मामला हो, बेरोजगारों को भत्ता देने का मामला हो या फिर कृषि मजदूरों को पेंशन देने का मामला हो, वंचित समुदाय के खातों में सीधे रकम डालने के किसी भी वायदे को पूरा नहीं किया गया। नतीजा 2018 में भाजपा सरकार की विदाई और कांग्रेस की भारी विजय के रूप में सामने आया।

चूँकि नरेन्द्र मोदी का छत्तीसगढ़ से पुराना नाता है

यह बात कम लोग जानते होंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व के व्यक्तिगत अनुभव छत्तीसगढ़ को लेकर अच्छे नहीं रहे हैं। सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के बाद जब नरेंद्र मोदी को बतौर पर्यवेक्षक प्रदेश अध्यक्ष के मसले को सुलझाने के एक मामले में भेजा गया था, तब भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं ने उनकी भारी बेइज्जती की थी। दूसरा तथ्य यह है कि डॉ रमन सिंह, बृजमोहन समेत तमाम नेता उस खेमे के माने जाते हैं, जिस खेमे की स्वर्गीय सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी और डॉ हर्षवर्धन जैसे नेता रहे हैं। यह भी नापसंदगी की एक स्वाभाविक वजह हो सकती है। अब इस स्थिति का नतीजा यह हुआ है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के सारे निर्णय दिल्ली से लिए जाने लगे हैं।

 

आयातित नेताओं के दम पर भाजपा

बिहार से नितिन नवीन तो राजस्थान से ओम माथुर के हाथ में छत्तीसगढ़ का प्रभार दे दिया गया है। बाहरी राज्यों से आए नेता पर्यवेक्षक बनकर विधानसभा क्षेत्रों की ख़ाक छान रहे हैं। यह वह लोग हैं जिनको न तो राज्य की राजनीति की समझ है न तो मुद्दों की। नतीजा यह है कि इस चुनावी मौसम में भाजपा के  तमाम दिग्गज या तो घर बैठे हैं या भाजपा कार्यालय में कुर्सियां तोड़ रहे। यह सब तब हो रहा जब भूपेश सरकार का छत्तीसगढ़ियावाद सभी मुद्दों पर भारी पड़ रहा।  एक अफवाह तेजी से तैर रही कि केंद्रीय नेताओं का जो रवैया है, कहीं ऐसा न हो कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह खुद ही कह दें कि हम चुनाव नहीं लड़ेंगे, हम पार्टी को जिताएंगे।

 

चुनाव से पहले एक और  जंग

एक बड़ा सवाल उठता है कि 2023 के चुनाव को लेकर कांग्रेस की तैयारियां कैसी हैं? एक चीज जो दोनों तरफ नजर आ रही है, वह यह है कि बड़े पैमाने पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के सामने भितरघातियों की लंबी कतार है। भाजपा ने पहले ही 21 सीटों की घोषणा कर दी है लेकिन द्रोह के भय से दूसरी सूची घोषित करने में देर कर रही है। क्योंकि पहले घोषित की गई सीटों पर संभावित दावेदारों के बीच जमकर रार शुरू हो गई है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने टिकटों की घोषणा भले न की हो। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कांग्रेस नेताओं के संकल्प शिविर को संबोधित करते हुए कहना पड़ा है कि जिन उम्मीदवारों को टिकट से वंचित किया जाएगा, उन्हें किसी विशेष सीट पर पार्टी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करके पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

शैलजा और सिंहदेव के चक्रव्यूह का दम

कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या छत्तीसगढ़ प्रभारी कु शैलजा की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के कार्यकाल में पांच साल तक संगठन के असहयोग से जूझते रहे हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज सुलझे हुए हैं लेकिन प्रभारी कु शैलजा अपने तमाम निर्णयों से लगातार इस बात का एहसास कराती रहती हैं कि राज्य में चुनाव कांग्रेस पार्टी लड़ रही है न कि भूपेश बघेल। हालांकि न तो जनता इसे मानती है न ही कांग्रेस के कार्यकर्ता और विधायक इस बात को मानने को तैयार हैं। चुनाव सिर पर हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अब तक मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर भूपेश बघेल के नाम को आगे नहीं बढ़ाया है।

छत्तीसगढ़ में दिल्ली से आये नेता भी यह कहने से बचते हैं। दरअसल कांग्रेस पार्टी अब तक यह स्वीकार नहीं कर पाई है कि भूपेश बघेल ही 15 साल पुराने भाजपा के घेरे को तोड़कर सत्ता में आने की  एकमात्र वजह हैं। भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनने के बाद एक चुनौती उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव से मिल रही थी लेकिन उन्होंने इसका बहुत ही चतुराई भरा हल निकाल लिया। एक तरफ जहां उन्होंने सिंहदेव की बतौर उपमुख्यमंत्री ताजपोशी स्वीकार कर ली बल्कि उनके तमाम बयानों पर चुप्पी साध ली।

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रायगढ़ दौरे के दौरान टीएस सिंहदेव ने मोदी सरकार की प्रशंसा में कह दिया कि केंद्र सरकार द्वारा कभी हम लोगों के साथ कोई पक्षपात नहीं किया गया राज्य की स्वास्थ्य जरूरतों को समय से पूरा किया गया। सिंहदेव के इस बयान पर भले भूपेश बघेल खामोश रहे हों लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति की हैदराबाद बैठक में सिंहदेव को इसके लिए खरगे द्वारा नसीहत दे दी गई। यह भी सच है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी राज्य के अपने दौरों में भूपेश बघेल के ऊपर किसी नेता को तरजीह देने से अब बचते हैं।

 

क्यों आगे दिख रही है कांग्रेस

कांग्रेस चुनाव पूर्व तमाम सर्वेक्षणों में भाजपा से आगे निकलती दिख रही है तो इसकी सबसे बड़ी वजह राज्य सरकार की वह नीतियां हैं जिसने प्रदेश के किसानों को लाभ की खेती के नए अवसर उपलब्ध कराएं हैं। वह अभिभावक हैं जो अपने बच्चों की अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में जाकर पढ़ता देख खुश होते हैं, वह महिलाएं हैं जिनके स्व सहायता समूह अब लाभ में चल रहे और जिन्हें अब गोबर के भी दाम मिल रहे। दरअसल भूपेश यह जानते हैं कि किसान बहुल छत्तीसगढ़ में अन्य प्रदेशों की राजनीति चल नहीं सकती। यहां मुस्लिमों की आबादी महज दो फीसदी है इसलिए भाजपा का हिंदू-मुस्लिम फार्मूला भी यहां फिट नहीं बैठता। वैसे में भूपेश बघेल ने सत्ता संभालते ही जो पहला काम किया वह यह कि अपनी ज्यादातर योजनाओं को ग्रामीणों और आदिवासियों के लिए मोड़ दिया। निस्संदेह शुरुआत में शहरी मतदाताओं ने इसको अपनी अनदेखी समझा लेकिन गांवों और किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होने से जो पैसा आया वह शहरों में खर्च हुआ। अब आज नतीजा यह है कि भाजपा का परंपरागत वोटर माने जाने वाला राज्य का साहू समाज भी कांग्रेस की बात कर रहा है। जबकि यह सच्चाई है उनके बड़े नेता ताम्रध्वज साहू 2018 में मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे।

 

फिर से जलवा दिखाने को तैयार टीम भूपेश

कांग्रेस की बढ़त की एक बड़ी वजह वह टीम है जो भूपेश बघेल के लिए पिछले चुनाव में भी विजय लेकर आई थी। इस चुनाव के लिए भी वह पिछले दो साल से जुटी है। नहीं भूला जाना चाहिए कि भूपेश बघेल की इसी टीम की बदौलत कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में हारी हुई बाजी जीत ली थी। यही टीम उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के संगठन को फिर से खड़ा करने का काम कर रही है और यही टीम प्रियंका गांधी की सबसे पसंदीदा टीम है। पत्रकारों और अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों से सुसज्जित यह टीम फिलहाल सभी विधानसभाओं में कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का काम कर रही है।

भूपेश की भेंट मुलाक़ात भाजपा की चुप्पी

कांग्रेस की बढ़त की एक तीसरी वजह भी है मुख्यमंत्री ने विगत दो वर्षों में जो भेंट मुलाकात कार्यक्रम के तहत लगातार एक के बाद एक सभी विधानसभाओं का दौरा किया है। यह सच है कि बरसों बाद किसी मुख्यमंत्री को इस कदर सघन दौरा करते देखा गया है। यह दौरे और इन दौरों में की गई घोषणाओं पर हुई कार्रवाई ने जनता के विश्वास को बढ़ाया है।

एक आखिरी वजह यह है कि भाजपा सत्ता से बाहर होने के बाद एक बार भी प्रतिपक्ष की अपनी भूमिका का ईमानदारी से निर्वहन करने में असमर्थ रही है। न तो वह सड़क पर दिखाई दी न ही गंभीर मुद्दों पर भाजपा के नेताओं ने कोई बड़ा जनांदोलन खड़ा किया। भाजपा लगातार महंगाई और बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों पर बात करने से बचती रही हैं क्योंकि वह जानती है कि इन मुद्दों पर लोग खुद ही भाजपा को घेर लेंगे। आज प्रधानमंत्री मोदी आने वाले हैं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह अपने ट्वीटर खाते से वीडियो संदेश जारी कर आम जनता से अपील कर रहे हैं कि आप मोदी को सुनने आएं। हिंदू हृदय सम्राट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा में भीड़ बुलाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री को अपील करनी पड़ रही हो तो आप समझ सकते हैं कि हवा का रुख किधर है।

 

 

 



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