खेल दिवसः चार ओलंपियन देने वाले शहर में मेजर ध्यान चंद और शंकर लक्ष्मण जैसे दिग्गजों का मैदान भी नहीं बचा


हॉकी खिलाड़ियों का शहर महू, यहां खिलाड़ियों में हॉकी का शौक तो है लेकिन खेलने को मैदान नहीं…


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
बड़ी बात Updated On :
महू शहर में हाई स्कूल में हॉकी का मैदान


इंदौर। 29 अगस्त, खेल दिवस यानी हॉकी के जादूगर ध्यानचंद का जन्मदिन। कुछ दिन पहले खेल रत्न पुरुस्कार का नाम भी बदलकर ध्यानचंद के नाम पर रखा गया। सरकार ने इस तरह अपनी मंशा साफ की कि वह खेलों के प्रति गंभीर है लेकिन यह गंभीरता फिलहाल अधूरी नजर आ रही है।

ओंलंपिक खिलाड़ी पद्मश्री किशनदादा, अख्तर हुसैन, गुरूबख्श सिंह और  शंकर लक्ष्मण जैसे महान हॉकी खिलाड़ियों का शहर महू हॉकी की बदहाली का दास्तान कह रहा है।

उम्मीद थी कि इतने बड़े खिलाड़ियों के इस शहर में अब हॉकी के लिए कई अकादमी होंगी, मैदान होंगे और सैकड़ों हुनरमंद खिलाड़ी होंगे लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है।

इस शहर में हाई स्कूल का हॉकी का वह मैदान तक नहीं बचा है जहां ध्यानचंद, शंकर लक्ष्मण जैसे खिलाड़ी खुद खेल चुके हैं। मैदान पर किसी का कब्जा नहीं है बल्कि इसे शासन ने खुद एक विकास योजना बनाकर खत्म किया है।

हमारा देश भले ही मेजर ध्यानचंद के नाम पर खेल दिवस मनाता हो लेकिन उनके मैदान को सहेजने में कोई रुचि नहीं दिखाई गई। स्थानीय मीडिया और खेल प्रेमी कहते रहे लेकिन इस मैदान पर एक विकास का वादा कर गर्ल्स हॉस्टल बना दिया गया।

अब मैदान पर एक और इमारत का निर्माण हो रहा है। यहां पढ़ने वाली कुछ लड़कियां खेलने में रुचि रखती हैं। इनमें से कुछ को हॉकी में भी रुचि है लेकिन उन्हें नहीं पता कि जिस जमीन पर वे खड़ी हैं वहां कभी हॉकी के जादूगर ध्यानचंद खेला करते थे।

खेलों पर होने वाली राजनीति असल खेल की दुनिया से काफी दूर होती है। महू में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय भी विधायक रहे लेकिन उन्होंने भी ध्यानचंद और हॉकी की इस विरासत को बचाने में कोई रुचि नहीं दिखाई।

विजयवर्गीय जो कि क्रिकेट एसोसिएशन के चुनावों में खास रुचि लेते रहे हैं और जब तक खेल के प्रति अपना आर्कषण व्यक्त करते रहते हैं।

प्रदेश में महू शायद इकलौता ऐसा कस्बा होगा जहां से चार-चार ओलंपिक खिलाड़ी देश को मिले हैं। इनमें पद्मश्री किशनदादा, अख्तर हुसैन (जो बटवारे के बाद पाकिस्तान टीम के कप्तान तक रहे),  गुरूबख्श सिंह और  शंकर लक्ष्मण शामिल हैं।

इनके अलावा नेशनल लेवल टीम के चंपादादा, प्रभुदयाल सोलंकी, मास्टर रिजोरिया, संतु, गेंदालाल भी महू से ही हैं और आज के हाईस्कूल के इसी मैदान पर खेला करते थे। इनमें बाबूलाल परदेशी  को भी याद करना होगा जिन्हें खेल समीक्षक ध्यानचंद की टक्कर का खिलाड़ी मानते थे।

ऐसे में कहा जाए तो महू हॉकी का शहर है लेकिन हॉकी के इस शहर में हॉकी के जादूगर का मैदान ही खत्म हो गया तो हॉकी खुद कैसे बचती। आज हॉकी के कुछ गिने-चुने खिलाड़ी ही यहां हैं।

अपने जमाने के एथलीट और हॉकी के खिलाड़ी और एंपायर रहे बसंत सोलंकी बताते हैं कि एक वक्त यहां चौबीस क्लब होते थे लेकिन आज महू की हॉकी बदहाल ही है।

बसंत सोलंकी

सोलंकी के मुताबिक उन्हें दुख है कि महू के शहरी खुद अपनी ही विरासत भूल गए और शायद अब वह ख़ात्मे की कगार पर है।
सोलंकी कहते हैं कि महू के युवा हॉकी खेलना तो चाहते हैं लेकिन अब उनके पास एक मैदान भी नहीं है। ऐसे में अगर शौक पैदा भी हो तो परवान कहां चढ़े।

पूर्व पत्रकार और खेल समीक्षक ओपी  ढ़ोली के मुताबिक हॉकी के लिए स्कूली स्तर पर ही तैयारी करनी चाहिए थी लेकिन मौजूदा दौर में ऐसा माहौल नहीं है। ढ़ोली के मुताबिक शासन को पुराने खिलाड़ियों की मदद लेकर नई उर्जावान खेप तैयार करनी चाहिए।

ओपी ढ़ोली

महू एक सैन्य छावनी है और यहां हमेशा से ही खेलों के प्रति खास आर्कषण रहा है लेकिन फिलहाल यहां खेलों पर संकट है, न सिर्फ हॉकी बल्कि किसी भी खेल के लिए आम लोगों के पास कोई मैदान नहीं बचा है।

यहां के बड़े मैदान सैन्य प्रशासन के कब्जे में है। ऐसे में वहां आम लोगों का खेलना भी सैन्य प्रशासन की ही मर्जी पर निर्भर करता है।

पिछले कुछ सालों में खेल के क्षेत्र में महू में एक स्टेडियम तैयार किया गया है। हाई स्कूल के पुराने मैदान को फुटबॉल स्टेडियम का दर्जा तो दे दिया गया लेकिन यह स्टेट एकेडमी के लिए हैं। ऐसे में महू के आम खिलाड़ी यहां नहीं खेल सकते।

शहर का पाथ इंडिया ग्रुप भी खेलों और खिलाड़ियों की मदद करता रहा है। इस ग्रुप के नितिन अग्रवाल अपनी ओर से पूरा स्टेडियम तक बनवाने की पेशकश कर रहे हैं। उनके मुताबिक सरकार अगर जमीन दे दे तो अपनी ओर से यह स्टेडियम बनवा देंगे।

नितिन अग्रवाल

नवीन सैनी एक और व्यवयायी हैं जो कई खिलाड़ियों को उनके अभियानों के लिए आर्थिक रुप से सहयोग करते रहते हैं। सैनी के मुताबिक महू के नागरिकों के खून में ही खेल है, जिनता खिलाड़ियों में जोश होता है उतना ही दर्शकों में होता है। सैनी के मुताबिक अगर हॉकी के लिए शासन कोई योजना बनाए तो वे उसमें सहयोग के लिये सबसे पहले खड़े नज़र आएंगे।

नवीन अग्रवाल

महू ने हॉकी के इतिहास में क्या योगदान दिया है इसका पता कामेंटेटर जसदेव सिंह से जुड़े उस किस्से से चलता है। कहा जाता है कि जब वे इंदौर आए और उन्हें पता चला कि देश के महान हॉकी खिलाड़ी महू शहर से हैं तो उन्होंने उसी पुराने हाई स्कूल मैदान की मिट्टी को अपने माथे पर लगाया और सहेजकर अपने साथ ले गए।



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