भर्ती सत्याग्रह से मिली कर्मचारियों को भी हिम्मत, अब संविदा कर्मी भी पोस्टकार्ड भेजकर मांग रहे अपना हक़


मध्यप्रदेश में सर्व शिक्षा अभियान के संविदा कर्मचारी अब सरकार से अपना वादा पूरा करने की मांग कर रहे हैं, प्रदेश के ये कर्मचारी महीनों में दो बार अब इसके लिए सरकार को पत्र लिखेंगे।


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उनकी बात Published On :

भोपाल। इंदौर में हुए भर्ती सत्याग्रह ने अब रोज़गार के मुद्दे को हवा दे दी है। इस मुद्दे पर अब रोजगार पाए हुए वे लोग भी बात कर रहे हैं जिन्हें सरकार ने नौकरी तो दे दी लेकिन एक कर्मचारी के नाते उन्हें मिलने वाले अधिकारों से वंचित रखा।

भर्ती सत्याग्रह के बाद ये कर्मचारी भी सरकार से अपनी मांगें पूरी करने के लिए कह रहे हैं हालांकि शासकीय कर्मी होने के नाते इनका तरीका आंदोलन का नहीं बल्कि आग्रह का है।

सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रदेश के सभी ज़िलों में तैनात संविदा कर्मियों को वेतन और तमाम दूसरी सुविधाएं सरकार के वादे के बाद भी नहीं मिली हैं। ऐसे में ये संविदाकर्मी परेशान हैं। इनके मुताबिक इनकी सालाना वेतन बढ़ोत्तरी भी नहीं होती और वेतन इतना कम है कि लगातार बढ़ रही महंगाई में परिवार चलाना भी मुश्किल हो रहा है।

इसके लिए राज्य सरकार को पोस्टकार्ड भेजे जा रहे हैं। यह अभियान शुरु हो चुका है। यह पोस्टकार्ड प्रदेश की एग्ज़िक्यूटिव कमेटी को भेजे जाएंगे। यह कमेटी ही वेतन संबंधी विषयों पर निर्णय लेने की क्षमता रखती है। इस समिति में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, प्रमुख सचिव वित्त, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन, प्रमुख सचिव आदिम जाति कल्याण विभाग और राज्य शिक्षा केंद्र के संचालक सहित कुल छह सदस्य हैं जिन्हें यह अपील करते हुए पोस्टकार्ड भेजे जा रहे हैं।

इस आंदोलन के दौरान राज्य सरकार ने भले ही औपचारिक रुप से युवाओं की बात न सुनी हो लेकिन इसका गहरा असर देखा गया। सोशल मीडिया पर अब अब रोज़गार से जुड़े हर मुद्दे पर युवा मुख़र हैं और ये अपनी बात कह रहे हैं। ये सभी कर्मचारी महीने में दो बार सभी छह सदस्यों को पोस्टकार्ड भेजेंगे।

सर्व शिक्षा अभियान के जिन कर्मचारियों द्वारा यह अपील की जा रही है वे इस सबसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक कार्यक्रम की रीढ़ हैं। इनमें संविदा एपीसी आईईडी, प्रोग्रामर, एमआईएस, लेखापाल, ऑपरेटर, एमआरसी, सहायक वार्डन, उपयंत्री जैसे कर्मचारी शामिल हैं।

ये सभी कर्मचारी व्यापम के द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षा पास करके आए हैं। व्यापम जिसका नाम अब कर्मचारी चयन आयोग रख दिया गया है। इस संस्था को मिनी पीएसएसी का दर्जा प्राप्त है यानी यहां से कनिष्ठ अधिकारी चयनित होकर आते हैं लेकिन संविदा के इन कर्मचारियों को वर्षों बाद भी नियमित नहीं किया गया है। इनमें से कई तो बीते 25 वर्षों से नौकरी कर रहे हैं। ऐसे में इन कर्मचारियों को अपने वर्तमान और भविष्य दोनों की ही चिंता है। ये कर्मचारी कहते हैं कि वर्तमान में उन्हें इस व्यवस्था से जूझना होगा और लड़े नहीं तो भविष्य में अपनी अवस्था से।

इन पोस्टकार्ड में अधिकारियों से अपील करते हुए कहा जा रहा है 

महोदय जी,  राज्य शिक्षा केंद्र, सर्व शिक्षा अभियान की एग़्ज़िक्यूटिव कमेटी की बैठक में हम सभी संविदा कर्मचारियों को सांतवें वेतनमान, नियमित एवं वर्तमान मानदेय विसंगतियों को दूर करने हेतु 2018 में लिए गए नीतिगत निर्णय सहानुभूति पूर्वक हम समस्त अल्पवेतन भोगी संविदा कर्मचारियों के भविष्य पर चिंतन कर अनुग्रहीत करें।

ये कर्मचारी भले ही अधिकारियों से बेहद विनम्रतापूर्वक अपील कर रहे हैं लेकिन इनकी वेतन विसंगतियां काफी गंभीर हैं। उदाहरण के लिए लेखापाल एक बेहद ज़िम्मेदार पद माना जाता है जिनके पास विकासखंड स्तर का लेखा रखने की जवाबदेही होती है लेकिन इन कर्मचारियों को पिछले पांच वर्षों में केवल छह हजार रुपये की ही बढ़ोत्तरी मिली है।

सागर ज़िले के एक लेखापाल बताते हैं कि उन्होंने साल 2015 में व्यापम की परीक्षा दी लेकिन उन्हें नियुक्ति दो साल तक चले एक कोर्ट केस जीतने के बाद साल 2017 में मिली। लेखापाल के तौर पर प्रारंभिक वेतन 15,547 रुपये था। कर्मचारियों को उम्मीद थी कि इस शुरुआती वेतन के बाद उन्हें कुछ अच्छी बढ़ोत्तरी मिलेगी लेकिन पांच साल बाद 2022 में यह वेतन तकरीबन 20,100 रुपये ही हो पाया है।

दरअसल इन कर्मचारियों को आज भी साल 2009 में तय छठे वेतनमान के आधार पर वेतन दिया जाता है यानी कहा जा सकता है कि इन्हें सरकारी नौकरी मिल तो गई लेकिन इन्हें आज भी कर्मचारियों के वेतन संबंधी अधिकारों से करीब तेरह साल पीछे रखा गया है।

इसके बाद साल 5 जून 2018 को तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने एक निर्णय लिया और इसके आधार पर मसौदा नीति तैयार की गई। जिसके तहत संविदाकर्मियों को उनके स्तर के नियमित कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन का 90 प्रतिशत वेतन देने और उनके पदों पर नियमित किये जाने की बात कही गई थी।

यह निर्णय कई विभागों ने लागू कर भी दिया। इसके बाद कांग्रेस सरकार गिर गई और शिवराज फिर मुख्यमंत्री बने। इसके बाद से ही सर्व शिक्षा अभियान के कर्मचारी लगातार अपील करते रहे लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ। ये कर्मचारी आज वेतन विसंगतियों के साथ बढ़ती महंगाई से परेशान हैं। सर्व शिक्षा अभियान के ज्यादातर कैडर के कर्मचारियों को महंगाई और दूसरे भत्ते दिये भी नहीं जाते हैं।

इन कर्मचारियों को नियमित उस स्थिति में भी नहीं किया जा रहा है जब प्रदेश में इनके लिए हज़ारों की संख्या में पद रिक्त हैं। लेखापाल की ही बात करें तो लोक शिक्षण संचालनालय में इनके लिए करीब 600 पद हैं। इसी तरह हर कर्मचारी के लिए नियमित पद हैं लेकिन सरकार ने इन्हें वर्षों की सेवाओं के बाद भी इन्हें स्थाई नियुक्ति नहीं दी गई है।

 

 

 

 



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