बेरोजगारी, पलायन और प्यास कुछ भी नहीं बदला भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के संसदीय क्षेत्र खजुराहो में फिर भी जीत तय


खजुराहो में वीडी शर्मा से काफी उम्मीदें थीं लेकिन यहां कोई बड़ी परियोजनाएं नहीं आईं, आज भी यहां पलायन से खाली हो जाते हैं गांव



मप्र के बुंदेलखंड इलाके में  26 अप्रैल को चुनाव हैं और जनता से ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालने की अपील की जा रही है। हालांकि चुनावी शोर बहुत ज्यादा सुनाई नहीं दे रहा। बुंदेलखंड की खजुराहो सीट पर भी नहीं, जहां से भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा खुद सांसद हैं। उनकी यह सीट काफी चर्चाओं में रही है। शर्मा का प्रदेश और देश की राजनीति में काफी नाम है। पिछले दिनों दमोह में हुई रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके काम की तारीफ की थी। ऐसे में खजुराहो पन्ना लोकसभा सीट के वोटरों को यह अहसास है कि उनके सांसद बेहद खास हैं और संभव है कि वे आगे केंद्र में मंत्री भी बन जाएं।

पन्ना एक ऐतिहासिक इलाका है, बुंदेलखंड के राजाओं की धरती, जहां पत्थर और हीरे दोनों की खदानें हैं, टाईगर रिज़र्व हैं। इसे झीलों तालाबों का शहर भी कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद यह इलाका बूंद बूंद पानी को भी तरसता है। शहर में करीब बारह तालाब हैं लेकिन पानी 48 घंटों में एक बार ही आता है। नल जल योजना के तहत यहां नल तो लोगों के घरों तक पहुंच गए हैं लेकिन पानी नहीं पहुंचा। पन्ना शहर के लोगों में वोटिंग को लेकर कोई खास उत्साह नजर नहीं आता। हालांकि वे कहते हैं कि वे केंद्र की मोदी सरकार के साथ हैं। दरअसल ये लोग अपनी रोज के जीवन के संघर्ष में ही उलझे हुए हैं।

खजुराहो-पन्ना लोकसभा क्षेत्र में जब मतदान की तैयारी आखिरी चरण में है उसी समय बस स्टैंड पर सैकड़ों लोग बस स्टैंड पर दिखाई दे रहे हैं। ये लोग वे ग्रामीण हैं जो आगे काम की तलाश में दूसरे शहरों में जा रहे हैं। इनमें से एक हैं बिट्टू जो चार दोस्तों के साथ चंढ़ीगड़ जा रहे हैं वे अक्सर चंडीगढ़ जाते हैं, बिट्टी के मुताबिक उन्हें स्थानीय स्तर पर कोई काम नहीं मिलता और मिलता भी है तो उसके पैसे से पूरा परिवार नहीं चल सकता। ऐसे में गांव से दूर जाना मजबूरी है।

 

मप्र के बुंदलखंड में भारतीय जनता पार्टी ने विकास का नारा खूब चलाया है लेकिन इससे यहां के हालात नहीं बदले। पन्ना- खजुराहो में भी हाल ऐसा ही है। यहां हर साल हजारों लोग दिल्ली, चंडीगढ़, बड़ोदरा, सूरत, अहमदाबाद, भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में रोजगार के लिए जाते हैं। बेरोजगारी के हालात ऐसे हैं कि यहां के गांव के गांव खाली हो जाते हैं।

पन्ना शहर

इस संसदीय क्षेत्र का नज़ारा मप्र के बुंदेलखंड के किसी दूसरे इलाके जैसा ही है बस अलग है तो खजुराहो को मिला विश्व पर्यटन का तमगा। जिसके चलते यहां पर्यटकों की भीड़ भी नजर आ जाती है लेकिन गांव देहात में ऐसा नहीं है। पन्ना और खजुराहो के बीच की दूरी करीब 55 किमी है। खजुराहो संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभाएं लगती हैं। इनमें चांदला, पवई, राजनगर, गुन्नौर, पन्ना, विजयराघवगढ़, बहोरीबंद शामिल हैं।

स्थानीय मोहन सिंह बताते हैं कि अमानगंज इलाके में कुछ साल पहले ही बनी एक सीमेंट फैक्ट्री है लेकिन वहां स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिलता। फैक्ट्री बाहरी लोगों को रोजगार देती है। इसके अलावा कोई ऐसी इकाई नहीं है जो बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार दे सके।

पन्ना टाईगर रिज़र्व भी अहम है, जहां हर बार सबसे ज्यादा टाईगर नजर आते हैं, यहां का वन्य जीवन भी बहुत अच्छा है और ऐसे में हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं लेकिन इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को कोई खास फायदा नहीं मिलता।

पन्ना शहर में वेटनरी अस्पताल के नजदीक रहने वाले हिम्मत खान एक स्थानीय पत्रकार हैं, वे बताते हैं कि इलाके में बेरोजगारी इतनी है कि हर साल गांव के गांव खाली हो जाते हैं। खान आगे कहते हैं कि इसके अलावा पन्ना टाईगर रिजर्व को लेकर भी खूब बातें होती हैं लोग पन्ना में टाईगर को देखने आते हैं लेकिन इसकी वजह से स्थानीय लोगों को शायद ही कोई लाभ मिलता है। खान बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में स्थानीय लोगों को किसी भी तरह से तरजीह नहीं दी जाती है उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रोजगार नहीं मिलता।

पन्ना के गांव आज भी खाली नजर आते हैं, यहां के लोग उन शहरों में बस गए हैं जिनमें उनका जीवन आसान है। एक टीवी चैनल में काम करने वाले स्थानीय पत्रकार सुशांत चौरसिया बताते हैं कि  इसे समझना मुश्किल नहीं है। वे कहते हैं कि ज्यादातर लोग रोज़गार और पढ़ाई के लिए दूसरे शहर चले जाते हैं। वे कहते हैं कि शहर की जनसंख्या बेहद धीमी गति से बढ़ रही है। चौरसिया के मुताबिक आजादी के समय पन्ना शहर एक समृद्ध इलाका था, जहां हीरे और पत्थर की खदानें थीं, झील और तालाब थे, जंगल थे, पर्यटन था लेकिन अब यहां कुछ भी नहीं बचा और इनमें लोग भी शामिल हैं।

चौरसिया के मुताबिक मौजूदा सांसद वीडी शर्मा के समय में भी पन्ना में कोई विकास नहीं कहा जा सकता है, बेरोजगारी और पलायन जस का तस है। पानी की आपूर्ती को लेकर यहां कोई ठोस योजना नहीं है, दर्जनों तालाबों के बावजूद पानी नहीं मिलता। चौरसिया बताते हैं कि पुराने समय में यहां तालाबों की श्रंखला थी ये तालाब एक दूसरे से जुड़े थे एक का पानी खत्म होता था तो दूसरे से आपूर्ती होती थी और इसी तरह जल भराव की भी व्यवस्था थी लेकिन इस विरासत को नहीं सहेजा गया यहां वे किलकिला फीडर नाम के एक और वॉटर सिस्टम की बात करते हैं।

किलकिला फीडर में पहाड़ों से आने वाले पानी को  कुछ नालों और मैदानों से होकर तालाबों में उतारता था  ताकि शहर को पानी मिलता रहे लेकिन अब इस फीडर सिस्टम की भी अनदेखी होती रही और इसकी जमीनों पर कब्जा हो गया लिहाजा यह भी काम नहीं करता। और इसका असर यह हुआ है कि शहर और गांव पानी को तरसते हैं। चौरसिया आगे बताते हैं कि करीब पचास प्रतिशत शहरी इलाके में पानी की भारी समस्या है। ग्रामीण क्षेत्र की बात करें तो मुड़वारी गांव में पानी की स्थिति बेहद भयानक है। जहां लोग नदियों किनारे गड्ढा खोदकर पानी भरने को मजबूर हैं।

स्थानीय लोग सत्ताधारी दल की आलोचना करते हुए दिखना नहीं चाहते। नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर एक व्यापारी बताते हैं कि वीडी शर्मा ने अपना ध्यान केवल अपना राजनीतिक कद बढ़ाने में ही रखा है। उन्होंने स्थानीय जनता को किसी भी प्रकार की राहत देने के लिए खास प्रयास नहीं किए हैं। ये व्यापारी कहते हैं कि शर्मा चाहते तो पन्ना खजुराहो को वैसा उन्नत इलाका बना सकते थे जैसा कि कमलनाथ ने छिंदवाड़ा को संवारा है, क्योंकि शर्मा के पास राज्य से लेकर केंद्रीय मंत्रीमंडल सीधे प्रभावी पहुंच थी लेकिन वे अपने इलाके में डॉक्टरों की कमी तक को पूरा नहीं कर पाए। यहीं बैठे एक अन्य व्यवसायी बताते हैं कि शर्मा पन्ना खजुराहो को नहीं समझते क्योंकि वे इस इलाके के नहीं हैं। वे अपने करीबी या करीबियों के करीबी या परिचित लोगों का साथ देते हैं, उनकी मदद कर देते हैं वे इसी को लोगों के दिलों में उतरना मानते हैं जबकि अगर वे सार्वजनिक रूप से लाभकारी सिंचाई, रोजगार जैसी योजनाएं लाते तो शायद इस इलाके के लिए कभी न भुलाए जा सकने वाले राजनेता हो जाते।

स्थानीय पत्रकार विक्रांत दुबे बताते हैं कि जिले की पवई विधानसभा में मुड़वारी पंचायत की दलित बस्ती में करीब एक हजार की आबादी है लेकिन आजतक नलजल जैसी योजनाओं का लाभ नही मिला हैजबकि गांव में दूसरे मोहल्ले में नलजल योजना के तहत नल लगाए गए हैं। यहां लोग अपनी प्यास बुझाने गांव के नजदीक नदी किनारे गड्ढे खोदकर पानी निकालकर भरते हैं।

गड्ढे से पानी भर रही शिरोमण बाई ने बताया कि गांव में बड़े लोगो के घरों में नल लगे हैं। दलित बस्ती में नल नही लगाए गए हैं। कई वर्षों से ऐसे ही गर्मियों में पानी भरते हैं।सरपंच,सचिव,विधायक व जिले के कोई भी जिम्मेदार अधिकारी नहीं सुन रहे हैं। यहां की मंजू कोरी ने बताया कि 20 वर्ष पहले मेरी शादी हुई तभी से पानी की किल्लत झेल रहीं हैं, नदी के गड्ढों से दूषित पानी भर रहीं हैं। इसी जगह गांव के लोग शौच के लिए भी जाते हैं और गाय भैंस भी यहीं नहलाए जाते हैं।  हल्की बाई कहती हैं कि मेरी शादी हुए 50 वर्ष हो गए हैं लेकिन गांव में पानी की कोई व्यवस्था आजतक नहीं हुई।

पन्ना के कई गांवों में लोग पीने के पानी के लिए इस तरह जतन करते हैं।

ग्रामीण इलाकों की बात करें तो यहां बृजपुर इलाके में ऐसे कई गांव हैं जो रोजगार के लिए जैसे सामुहिक रूप से दूसरे शहरों में पलायन कर जाते हैं। गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का अंदाज़ा लगाना हो तो शहरों की स्थिति से काफी कुछ समझा जा सकता है। पत्रकार विक्रांत दुबे बताते हैं कि शहर के जिला अस्पताल में डॉक्टरों के कुल 28 पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से केवल चार डॉक्टर ही सेवाएं देते हैं। कई बार तो इमरजेंसी के समय भी डॉक्टर नहीं मिलते।

ये पत्रकार बताते हैं कि जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद नाजुक हालत में है और किसी भी मेडिकल इमरजेंसी के समय लोगों को सतना या जबलपुर अथवा भोपाल जाना होता है। वे कहते हैं कि सरकार को यह बात पता है और इसीलिए उन्होंने  यहां एक मेडिकल कॉलेज की घोषणा की है लेकिन यह भी पीपीपी मोड पर बनाया जा रहा है। ऐसे में निजी कंपनी भी इसे चलाएगी। अब लोगों को अंदेशा है कि यहां सरकारी दरों पर इलाज नहीं मिलेगा और इससे रोजगार को लेकर भी बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती है।

सूरत की तरह खाली खजुराहो…

खजुराहो की सीट कांग्रेस ने गठबंधन के समझौते के तहत सपा को दे दी थी लेकिन सपा ने यहां अपना पहला उम्मीदवार बदल दिया और दूसरी उम्मीदवार के रूप में मीरा यादव रहीं जिनका पर्चा निरस्त हो गया। खबरें ये भी उठीं कि मीरा ने अपना नामांकन दस्तखत के बिना जानबूझकर अधूरा छोड़ा था और पुरानी मतदाता सूची लगाई थी, जिस पर निर्वाचन अधिकारी ने उन्हें चेताया भी था लेकिन उन्होंने कहा कि वे मीडिया से बात करने जा रहीं हैं और फिर आकर इसे पूरा कर देंगी लेकिन वे नहीं आईं।

ऐसे में कहा जा रहा है कि यादव ने अपना नामांकन जानकर रद्द करवा दिया था। हालांकि कांग्रेस और सपा ने इसे गलत बताया है। एक राष्ट्रीय अखबार में काम करने वाले स्थानीय पत्रकार के मुताबिक इसके बाद कई दूसरे उम्मीदवार भी इस सीट से हटने को तैयार थे और हट भी रहे थे लेकिन बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार लापता हो गए और फिर यह कोशिश नाकाम हो गई। ऐसे में शर्मा को चुनाव लड़ना पड़ रहा है। हालांकि यह पत्रकार कहते हैं कि उन्हें कोई चुनाव नजर नहीं आता है क्योंकि इलाके में तमाम परेशानियों को बावजूद शर्मा इकतरफा जीतने जा रहे हैं।

सुशांत चौरसिया कहते हैं कि जनता अपने मुद्दों को नहीं पहचान रही है। जनता के सामने गरीबी, पलायन, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य हर तरह का मुद्दा है लेकिन वह इनके दम पर अपना नेता नहीं चुनना चाहती है।

मप्र के बुंदेलखंड का यह कोर इलाका है। यहां बेरोजगारी और इसके चलते पलायन के साथ ही विकास और पानी की कमी का मुद्दा भी अहम है। हालांकि सत्ताधारी दल इन मुद्दों को मानता है लेकिन इतना अहम नहीं कि इसके बल पर चुनाव हो सकें। ज्यादातर स्थानीय भाजपाई नेता चुनाव का मुद्दा पूछने पर कहते हैं कि इस चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा नरेंद्र मोदी ही हैं, क्यों पूछने पर वे कहते हैं कि देश को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना है।

यही बात पन्ना बस स्टैड पर मिले हरिराम भी कहते हैं, हरिराम अपने परिवार के साथ दिल्ली जा रहे हैं जहां वे कन्ट्रक्शन वर्कर के तौर पर काम करते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें बाहर जाकर कमाना ही होता है क्योंकि गांव में रहने से पेट पालना मुश्किल है। हालांकि चुनावों को लेकर उनका मानना है कि मोदी सरकार ने काफी विकास किया है और उन्हें जीतना चाहिए। हरिराम दिल्ली में एक हजार रुपए दिन तक कमा लेते हैं और परिवार हर महीने करीब दस हजार रुपए तक बचा लेता है।

खजुराहो क्षेत्र के इन नेताओं में से ज्यादातर को स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा बात नहीं करनी थी। ऐसे में इन मुद्दों पर जनता ही ज्यादा बात करती है हालांकि जनता को भी इसे लेकर खास उम्मीद नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि भाजपा इस इलाके में खासी मजबूत दिखाई दे रही है और सामने कोई मजबूत उम्मीदवार भी नहीं है और ऐसे में इस बार चुनाव केवल एक औपचारिकता ही नजर आ रहा है। हालांकि पन्ना-खजुराहो संसदीय सीट पर केवल एक और चुनाव बदल रहा है मुद्दे जस के तस हैं।



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