धार में आजादी से पहले शुरू हुए शासकीय संगीत महाविद्यालय में किया गया शास्त्रीय संगीत का आयोजन


धार में संगीत महाविद्यालय की शुरुआत 1945 में हुई थी। प्रदेश में संगीत कला में धार की अलग पहचान है। संगीत मूर्धन्य पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे संगीत के बहुत बड़े योद्धा माने जाते हैं। उन्होंने भारतीय संगीत पद्धति को स्वरलिपि दी है।


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धार। संगीत मूर्धन्य पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे की पुण्यतिथि में सोमवार की शाम को शास्त्रीय संगीत ध्रुपद गायन की प्रस्तुति हुई। ध्रुपद गायन को सुनने बड़ी संख्या में संगीत प्रेमी पहुंचे।

मप्र शासन संस्कृति विभाग के निर्देश पर शासकीय संगीत महाविद्यालय द्वारा शास्त्रीय संगीत का आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली के कलाकार समित मलिक ने ध्रुपद गायन की प्रस्तुति दी।

मलिक जब प्रस्तुति दे रहे थे तब श्रोता उनके गायन को सुनते हुए मंत्रमुग्ध हो गए। कार्यक्रम में सारंगी वादन भोपाल के कलाकार मुन्ने खां ने दिया। वायलिन वादन इंदौर के कलाकार सुभाष देशपांडे ने दिया।

कार्यक्रम के पूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस में संगीत महाविद्यालय प्राचार्य कांती तिर्की ने बताया कि

भातखण्डे संगीत के बहुत बड़े योद्धा माने जाते हैं। उन्होंने भारतीय संगीत पद्धति को स्वरलिपि दी है। उन्हीं की वजह से हमारे संगीत महाविद्यालय में संगीत परंपरा चल रही है। प्राचीन काल में गुरु शिष्य परंपरा के तहत यह शिक्षा दी जाती थी। भातखण्डे साहब ने बहुत सारे संगीत कलाकारों को सुना। इसके बाद उन्होंने परंपरा को जीवित रखने के लिए स्वरलिपि की स्थापना की। उनकी पद्धतियों से हमारा संघ शिक्षा का क्रम चलता आ रहा है। उनकी पुण्यतिथि पर हम कार्यक्रम करते हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान शासकीय संगीत महाविद्यालय प्राचार्य कांती तिर्की, ललित कला महाविद्यालय जनभागीदारी समिति अध्यक्ष अतुल कालभवर, संगीत महाविद्यालय के जनभागीदारी समिति अध्यक्ष दीपल खलतकर मौजूद थे।

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धार से निकले बड़े-बड़े कलाकार –

प्राचार्य कांती तिर्की ने बताया कि धार में संगीत महाविद्यालय की 1945 में शुरुआत हुई थी। इस विद्यालय से बड़े-बड़े कलाकार निकले हैं। वर्तमान में जो विद्यालय राजबाड़ा में संचालित हो रहा है, उसमें बेहद ही कम जगह है। इस वजह कई एक्टिविटी हम यहां नहीं करवा पाते हैं।

शास्त्रीय नृत्य कला भी जगह का अभाव होने के कारण नहीं सिखाई जा रही है। शासन प्रशासन से इसके लिए हम प्रयासरत हैं। साथ ही वर्तमान में स्टाफ की भी काफी कमी है। धार के आस-पास संगीत का एक अच्छा केंद्र बनने से सभी को फायदा होगा। वर्तमान में हमारे यहां 100 विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं।

मध्यप्रदेश में आठ महाविद्यालय में से एक महाविद्यालय धार में –

उन्होंने कहा कि धार नगरी राजा भोज की नगरी है। पूरे मध्यप्रदेश में आठ संगीत महाविद्यालय हैं जिसमें से एक महाविद्यालय हमारे धार शहर में है। शासकीय संगीत महाविद्यालय जिसका लाभ हमारे शहर के बच्चे व जिले के बच्चे कम ले पा रहे हैं।

इसके लिए प्रचार प्रसार होना चाहिए। कई लोगों को तो पता ही नहीं है कि धार में संगीत महाविद्यालय भी है। हम चाहते हैं यहां पर धार जिले के ज्यादा से ज्यादा बच्चे संगीत का लाभ लें।

दिल्ली के कलकार समित मलिक 26 वर्षों से निरंतर ध्रुपद की प्रस्तुति दे रहे हैं। अब तक करीब 250 से 300 मंचों से प्रस्तुति दी है। उन्होंने बताया कि ध्रुपद पद्धति 400 वर्षों से निरंतर चल रही है। हमारे पूर्वजों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है जिनकी बदौलत यह घराना कायम रहा है। मैं इस परंपरा की 13वीं पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं।

उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि इस समारोह में मुझे भी पुष्पांजलि अर्पित करने का अवसर मिला। सबसे प्राचीनतम गायन शैली ध्रुपद है। यहीं से सारी विधाओं का जन्म हुआ है। ख्याल कहें, ठुमरी कहें या लाइट म्यूजिक कहें। सारे संगीत की जननी ध्रुपद है।



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