किसान खुद मार्केटिंग कर प्रोडक्ट बेचने को मजबूर, विभाग के पास नहीं ब्राडिंग की योजना


4 गुना बढ़ा सीताफल का रकबा इसलिए 8090 मीट्रिक टन उत्पादन, ब्राडिंग नहीं होने से स्थानीय मार्केट पर निर्भर किसान।


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धार Published On :
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धार। एक ओर सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है वहीं जमीनी स्तर पर योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। ऐसा ही नजारा जिले में सीताफल को लेकर खेती करने वाले किसानों में देखा जा रहा है।

आदिवासी बाहुल्य धार जिले में सीताफल की बड़ी मात्रा में पैदावर होती है। मांडू, नालछा, उमरबन, धार सहित आसपास के पहाड़ी इलाकों में बड़ी संख्या में सीताफल की पैदावार होती है।

प्राकृतिक तौर पर तैयार सीताफल की बागवानी के कारण सीताफल बड़ी मात्रा में पैदावार देता है। यहीं कारण है कि उद्यानिकी विभाग द्वारा इसे एक जिला एक उत्पाद योजना के तहत चिह्नित किया है ताकि किसानों को इसका बेहतर दाम दिलवाया जा सके, लेकिन ब्राडिंग को लेकर विभाग के पास कोई कार्ययोजना नहीं है।

प्रदेश स्तर से सीताफल का चयन एक जिला एक उत्पाद के रूप में होने के कारण ब्राडिंग को लेकर कोई कार्ययोजना नहीं है। साल-दर-साल जिले में सोयाबीन का रकबा बढ़ा है।

बीते 6 साल में सोयाबीन का रकबा 280 हेक्टेयर से बढ़कर 809 हेक्टेयर में पहुंच गया है। इस कारण उत्पादन भी 3 हजार 91 मीट्रिक टन से बढ़कर 8 हजार 90 मीट्रिक टन पर पहुंच गया है।

यह आंकड़ा सिर्फ उद्यानिकी विभाग का है, जबकि वन भूमि पर लगे सीताफल के पेड़ इसमें शामिल नहीं है। ऐसे में सीताफल को लेकर यदि बेहतर मार्केट आदिवासी बाहुल्य ग्रामीण आबादी को मिलता है तो वे भी मुनाफे की तरफ बढ़ सकते हैं।

2 प्लांट की शुरूआत, 30 आवेदन पेंडिंग –

जिले में सीताफल का पल्प निकालने के लिए तेजी से किसानों का रूझान बढ़ रहा है। इस साल जिले में तेजी से बढ़ रहे सीताफल के उत्पादन को स्टोर करने के लिए बदनावर और धरमपुरी में दो फूड प्रोसेसिंग यूनिट शुरू की गई है।

बदनावर के गाजनोद में किसान उमाशंकर पाटीदार ने 40 हजार रुपये खर्च कर प्लांट लगाया है। मांडू और नालछा से सीधे सीताफल खरीदकर पाटीदार पल्प निकालकर स्टोर कर रहे है। अभी प्लांट शुरू हुए एक माह भी नहीं हुआ है और उनके पास 1 टन पल्प का ऑर्डर मिला है।

ग्रामीण विस्तार अधिकारी महेश वास्केल ने बताया शादियों में सीताफल पल्प से बनी मिठाईयों, रबड़ी और अन्य चीजों की डिमांड है। इस कारण आर्डर मिल रहे है। पल्प निकालने के बाद सीताफल के एक किलो पैकेट की कीमत 200 रुपये तक मिल रही है।

30 आवेदन है पेंडिंग –

इसके अलावा जिलेभर में इस तरह की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए किसानों ने उद्यानिकी विभाग में आवेदन किया है। विभाग के अनुसार अभी दो यूनिट स्थापित हो चुकी है जबकि 30 आवेदन पेंडिंग है।

बैंक लोन की मंजूरी मिलने के बाद जिले के अन्य हिस्सों में भी सीताफल के पल्प को स्टोर करने के लिए प्लांट खुलने की उम्मीद है। रॉ मटेरियल सस्ता होकर 30-35 रुपये किलो है। पैकेजिंग के बाद दाम अच्छे मिलने से उन्नत किसानों का रूझान इस ओर बढ़ रहा है।

इस तरह बढ़ता गया रकबा-उत्पादन

वर्ष – रकबा – उत्पादन

2016-17 – 280 हेक्टेयर – 3091 मीट्रिक टन
2017-18 – 310 हेक्टेयर – 3426 मीट्रिक टन
2018-19 – 325 हेक्टेयर – 3224 मीट्रिक टन
2019-20 – 360.25 हेक्टेयर – 3575 मीट्रिक टन
2020-21 – 421 हेक्टेयर – 4177.86 मीट्रिक टन
2021-22 – 809 हेक्टेयर – 8090 मीट्रिक टन

ओडीओपी स्कीम के तहत बढ़ाया जा रहा है सीताफल का रकबा –

ओडीओपी स्कीम के तहत सीताफल का रकबा बढ़ाने के लिए प्लांटेशन करवाया जा रहा है। रकबा और उत्पादन बढ़ा है। ब्राडिंग को लेकर कार्ययोजना नहीं है। प्रदेश स्तर से ही काम होना है। – मोहन सिंह मुजाल्दा, उप संचालक, उद्यानिकी विभाग, धार



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