मलेंडी के जंगल में बाघ ने किया बूढ़े चरवाहे का शिकार, वन विभाग की नाकामी से गई एक जान


8 मई से है महू में बाघ की हलचल, वन विभाग के अधिकारी भी नहीं दिखाई दिए गंभीर


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :
मलेंडी के जंगल में मिला शव


इंदौर। महू के जंगलों में एक जानवर ने इंसान का शिकार किया है। साल साल के सुंदर लाल का क्षत-विक्षत शव रविवार सुबह मलेंडी के जंगलों में मिला। वे जानवर चराने गए थे। शव की स्थिति को देखकर अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि सुंदर लाल को किसी ने जानवर ने ही निशाना बनाया है। यहां पंजों के निशान भी मिले हैं जो बाघ के बताए जाते हैं। दरअसल पिछले एक महीने से इस इलाके में बाघ देखा जा रहा है और तेंदुए की हलचल लगातार होती रही है। हालांकि जिस इलाके में यह घटना हुई है वहां बाघ की हलचल कई बार बताई गई है।

 

अब तक वन विभाग बाघ के बारे में कोई भी ठोस जानकारी देने या इसे पकड़ने में नाकाम ही साबित हुआ है। ऐसे में लगातार किसी अनहोनी की आशंका लगी हुई थी जो अब हो गई। अब तक मिली जानकारी के मुताबिक कुर्मी समाज के सुंदर लाल अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे और  गांव में ही उनके दो बेटे  देवी सिंह और हरि नारायण रहते हैं। सबसे पहले उनके शव को उनके पोते ने देखा। जानकारी वन विभाग को दी गई  लेकिन करीब साढ़े ग्यारह बजे तक वन विभाग के अफसर भी मौके पर नहीं पहुंचे थे।

 

मौके पर मिले बाघ के पगमार्क

महू में बाघ 8 मई को पहली बार देखा गया था जब इसकी रिकॉर्डिंग आर्मी वॉर कॉलेज में लगे सीसीटीवी में हुई थी। इसके बाद से ही बाघ की कई बार जानकारी मिली लेकिन वन विभाग इसे खोजने में अब तक नाकाम ही रहा है। बताया जाता है कि विभाग ने एक बाहरी विशेषज्ञ से इसके लिए पिंजरा भी लगवाया लेकिन यह तरकीब भी नाकाम रही। वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी भी बाघ की शुरुआती हलचल के बाद निष्क्रिय रहे। वन कर्मियों के मुताबिक डीएफओ नरेंद्र पंडवा भी इसे लेकर खास गंभीर नहीं दिखाई दिए। हालांकि इस दौरान बाघ पकड़ने की बजाए अधिकारियों ने नागरिकों को सूचनाएं छिपाने की तैयारी की गई। स्थानीय अधिकारियों द्वारा किसी भी तरह की जानकारी मीडिया को देने की मनाही कर दी गई थी।

सीसीटीवी कैमरे में रिकार्ड हुई थी बाघ की हलचल

उल्लेखनीय है कि महू बाघ का इलाका नहीं है ऐसे में यह बाघ बाहरी इलाकों से यहां आया हो सकता है। ग्लोबल टाइगर फोरम के प्रमुख पूर्व आईएफएस अधिकारी राजेश गोपाल ने पिछले दिनों इस विषय पर लिखी गई एक खबर में कहा था महू में बाघ का आना एक डिस्प्लेसमेंट एक्टिविटी है। ऐसे में बाघ के असल इलाके का पता लगाना ज़रूरी है और उसे वहां पहुंचाना भी उतना ही आवश्यक है। ये अधिकारी प्रोजेक्ट टाइगर से क़रीब 35 वर्षों तक जुड़े रहे हैं, इसके अलावा वह नेशनल टाइगर कन्ज़रवेशन अथॉरिटी के सदस्य भी रहे हैं।

वह कहते हैं कि अगर बाघ अनफिट है तो उसे सेंचुरी में पहुंचाना होगा। राजेश के मुताबिक़ भोपाल से होते हुए पश्चिम मध्यप्रदेश का टाइगर कॉरिडोर रातापानी से देवास की ओर जाता है जो बहुत ख़राब हालत में है, क्योंकि यहां ज्यादा जंगल नहीं बचे हैं। ऐसे में बाघ का रिहायशी इलाकों में आना उसके नैसर्गिक आवास में हुई किसी अप्रत्याशित घटना के कारण है।

हालांकि महू में इस तरह के प्रयास कम ही देखने को मिले हैं। पिछले दिनों लोगों ने यहां अपने घरों को सुरक्षित करना शुरु दिया था। यह सब मलेंडी और आसपास के गांवों में हो रहा था जहां सबसे ज्यादा बाघ की हलचल सुनने को मिली थी लेकिन इसके बावजूद वन विभाग की ओर से गंभीरता नहीं बरती गई।



Related