सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आत्मा सनातन है, भाजपा प्रदेश प्रशिक्षण वर्ग में बोले जयभान सिंह पवैया


महाराष्ट्र के सह प्रभारी एवं पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने कही जो धार के मांडू में चल रहे भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रशिक्षण वर्ग के तीसरे दिन के प्रथम सत्र ’सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को संबोधित कर रहे थे।


आशीष यादव आशीष यादव
राजनीति Published On :
jaibhan singh pawaiya mandu

धार। हम सभी के मन में भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्पष्ट धारणा होनी चाहिए। विविधता में एकता, ग्राह्यशक्ति, प्रकृति पूजा, उत्सव धर्मिता ऐसी कुछ बातें हैं जो भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को परिभाषित करती हैं। भारत की प्राणशक्ति इसके सनातन धर्म में है। जब तक सनातन धर्म रहेगा, यह देश रहेगा।

यह बात महाराष्ट्र के सह प्रभारी एवं पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया ने कही जो धार के मांडू में चल रहे भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रदेश प्रशिक्षण वर्ग के तीसरे दिन के प्रथम सत्र ’सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को संबोधित कर रहे थे। इस सत्र की अध्यक्षता धार जिले के प्रभारी श्याम बंसल ने की।

सत्र को संबोधित करते हुए पवैया ने कहा कि जब हम राष्ट्रवाद कहते हैं तो इसे राजनीति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। हमारा एकात्म मानववाद दर्शन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आत्मा के भाव को प्रकट करता है।

उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति की आत्मा इसके सनातन धर्म में है, यह हमारे दुश्मनों को पता था इसलिए जब मुगल आए तब उन्होंने हमारे धार्मिक क्षेत्र में सबसे अधिक आक्रमण किए। सोमनाथ मंदिर, भगवान राम जी का मंदिर क्षतिग्रस्त किया गया।

पवैया ने कहा कि यह भारतीय संस्कृति की ही ताकत है कि मुगलों ने हमारे मंदिरों से भगवान को बाहर तो किया लेकिन कोई हमारे मन के मंदिर से भगवान को बाहर नहीं कर पाया। यही कारण है कि आज अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण का सपना साकार हो रहा है।

mandu bjp training

उन्होंने कहा कि भारत पहला ऐसा राष्ट्र है, जिसे उसके निवासियों ने मातृशक्ति के रूप में अपनी माता माना है। जो भारत को सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा मानते हैं वो इसके लिए अपनी जान नहीं दे सकते हैं। इसके विपरीत जो इसे भारत माता मानते हैं, उनका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हमारे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी हैं जिन्होंने कश्मीर भूमि पर अपना बलिदान दिया।

पवैया ने कहा कि भारत की माटी की पवित्रता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि यहां रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रामानुजन, कबीर, रैदास, रहीम जैसे अनेक संतों ने जन्म लिया और सामाजिक समरसता का संदेश दिया। पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति का परचम फहराया।

उन्होंने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के पश्चात सबसे दुरुह समस्या यहां की रियासतों के विलय की थी, लेकिन सिर्फ तीन रियासतों को छोड़कर 562 रियासतों के राजाओं ने अपने मुकुट, अपनी संपदा भारत माता के लिए समर्पित कर दिए थे।

अनेक उदाहरण देते हुए पवैया ने कहा कि भारत आज स्वावलंबी और सबल बना है। भारतीय संस्कृति की गूंज पूरे विश्व में है। दुनिया भारत की संस्कृति को अपना रही है इसलिए आज आवश्यकता है कि हम अपनी पराजय के चिन्हों को मिटाएं और अपने मान बिन्दुओं पर गर्व करते हुए इसका मान बढ़ाएं।



Related