मानसून की बारिश होते ही खरीफ की बोवाई में किसानों ने सोयाबीन की नई वैराइटी पर आजमाया हाथ


पिछली बार से कम बारिश में किसानों ने कर दी 60 प्रतिशत बोवनी


आशीष यादव आशीष यादव
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धार। भले ही मानसून देरी से आया, लेकिन मानसून के आते ही बारिश का दौर शुरू हो गया है। बरसात की शुरुआत होने से किसान भी खरीफ की फसल की बुवाई के लिए किसानों ने खेतों को पहले ही तैयार कर लिया था, लेकिन जून माह समाप्त होने के आखिरी सप्ताह में बादल बरसे ओर किसानों ने खेतों में सोयाबीन की बोवनी की।

इस बार किसानों के लिए थोड़ी राहत की बात रही क्योंकि बारिश होने के बाद सभी किसानों ने एक साथ बोवनी की व बाद में बादल ने ऊपर से झमाझम कर दी। इस झमाझम ने किसानों के चहरों पर मुस्कान ला दी, लेकिन जिले में अभी भी कई जगह बोवनी बाकी है।

जून माह के मध्य औसत रूप से जिले में करीब 4 इंच बारिश दर्ज की गई है। सोमवार ओर मंगलवार को हुई मानसून की बारिश से जिले के किसानों ने स्फूर्ति दिखाते हुए करीब 60 प्रतिशत के लगभग बोवनी कर दी है। गत वर्ष इस समय तक 40 प्रतिशत के लगभग बोवनी हो पाई थी। जिले में गत वर्ष जून में कम बारिश हुई थी।

जिले में अभी भी अलग-अलग क्षेत्रों में करीब 40 प्रतिशत बोवनी और होना शेष है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान खेतों में दिखाई दे रहे हैं। आगामी एक सप्ताह के भीतर शत-प्रतिशत रकबे में बोवनी होने की पूरी संभावना है। बचे हुए भी किसान बारिश होते ही बोवनी कर देंगे।

परंपराओं से हटकर खेती की कोशिश –

जिले में परंपरागत खेती का ही चलन है जिसमें सोयाबीन, कपास, मक्का, मूंग-उड़द जैसी फसलों की खेती की जाती है। यह परंपराएं अभी भी बरकरार हैं, लेकिन खेती-किसानी में तौर-तरीके के बदलाव को लेकर व्यापक प्रचार-प्रसार और खेती में नवाचार जैसे कार्यक्रमों का असर अब जिले के किसानों में दिखाई देने लगा है।

किसान परंपरागत खेती के साथ नवाचार के प्रयोगों में लगे हुए हैं। जिले में कई इलाकों में किसान एक ही खेत में तीन अलग-अलग फसलों की एक साथ कतारबद्ध बुआई कर रहे हैं।

बड़े किसानों के खेतों में ट्रैक्टर दिखाई दे रहे हैं तो सुदूर अंचलों में छोटे आदिवासी किसानों के खेतों में बैलों के माध्यम से बुआई हो रही है। कृषि उपज एवं उद्यानिकी उपज एक साथ खेतों में बोई जा रही है।

डीजल ने महंगी की खेती –

जिले में मजदूर आधारित खेती का चलन कम हो रहा है। खेती में बोवनी से लेकर कटाई तक ट्रैक्टर, थ्रेशर, हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ गया है। कुछ किसानों के पास यह साधन है तो कुछ के पास नहीं है।

वे किराये पर साधन लेकर खेती कर रहे हैं। ऐसे में खेती-किसानी में खर्चे बढ़ गए हैं। जहां खेतों में 1 घंटा ट्रैक्टर से हकाई के लिए 300 रुपये खर्च करना पड़ते थे, वहां अब 500 रुपये खर्च करना पड़ रहे हैं।

यह सब डीजल के दाम बढ़ने के कारण हुआ है। किसानों के लिए यह राहत रही कि उर्वरकों पर दोगुना होने वाली वृद्धि को फिलहाल सरकार ने रोक दिया है, अन्यथा इसका असर किसान के मुनाफे से लेकर आम आदमी की खरीदी और सरकार की समर्थन मूल्य की खरीदी दाम पर पड़ता।

हर साल बढ़ रही लागत –

किसानों का कहना है कि ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेसर आधुनिक मशीनों के आ जाने से मजदूरों पर निर्भरता काफी हद तक कम हो गई है। खेती करना पहले से सरल जरूर हो गया है, लेकिन लागत भी काफी हद तक बढ़ गई है।

ट्रैक्टर की बहुउपयोगिता ने परंपरागत खेती के ढर्रे को पीछे छोड़ दिया है। कुछ ही घंटों में काम हो जाता है। यही वजह है कि अनेक लोग इसका उपयोग करने लगे हैं। वही हर साल डीजल उपकरणों के कारण खेती महंगी होती जा रही है।

कई क्षेत्रों में कम हुई है बारिश –

मानसून अभी बेहतर स्थिति में नहीं है। कई क्षेत्रों में कम बारिश दर्ज की गई है। धार क्षेत्र में करीब 3 इंच बारिश दर्ज की गई है, वहीं कई गांव अभी बारिश का इंतजार कर रहे हैं कि कब बारिश होगी और कब बोवनी करेंगे।

इसके अलावा मनावर में डेढ इंच के लगभग बारिश हुई है। इन दो क्षेत्रों को छोड़कर अन्य कृषि प्रधान क्षेत्रों में बदनावर में 2 इंच से अधिक तो तिरला 3 इंच, नालछा 3 इंच, गंधवानी में 3 इंच बारिश हुई है। धरमपुरी में महज सवा इंच बारिश पूरे जून माह में दर्ज की गई है।

तापमान में आई गिरावट, लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर –

मौसम में बदली व नमी और बारिश का असर तापमान पर भी पड़ा है। बारिश के बाद दिन के तापमान में 6 डिग्री गिरावट दर्ज की गई है। शुक्रवार को मौसम विभाग ने अधिकतम तापमान 29.8 व न्यूनतम तापमान 22.2 डिग्री दर्ज किया।

बारिश व नमी से मौसम में ठंडकता महसूस की गई। बारिश व बदलते मौसम का असर लोगों के स्वास्थ्य पर देखने को भी मिल रहा है। ऐसी स्थिति में बदलते मौसम के बीच सावधानी बरतनी होगी। खासकर बच्चों व बुजुर्गों को, क्योंकि सबसे ज्यादा असर इन पर होता है।

नई सोयाबीन की वैराइटी ज्यादा लगी –

किसान बताते हैं कि इस बार हमने सोयाबीन की नई वैरायटी पर हाथ अजमाया है। नई वैरायटी का उत्पादन भी अच्छा रहता है व बीमारियां भी कम लगती हैं और बीज भी कम लगाना पड़ता है। इसके लिए अधिकांश जगह में इस बार अलग-अलग तरह की नई वैरायटी की बुआई की गई है।

दूसरी ओर कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, मौसम के मिजाज को देखते हुए किसानों को एक वैरायटी के बजाय दो से तीन वैरायटी के बीज की बोवनी करनी चाहिए। यदि बारिश सामान्य हुई तो कम दिन वाले और ज्यादा बारिश हुई तो ज्यादा दिन वाले सोयाबीन की अच्छी पैदावार रहेगी।

सोयाबीन की नई वैरायटी जेएस 2172, आरवीएस 1135, पीएस 1569, आरवीएस 2218, आरवीएस 1116, 2069, जेएस 2117 ब्लेक बोर्ड जैसी सोयाबीन लगा रहे है आदि की पैदावार अच्छी हो रही है।

जिले में इस तरह से हुई बोवनी –

विधानसभा प्रतिशत

धार 70
बदनावर 68
मनावर 60
धरमपुरी 67
गंधवानी 55
सरदारपुर 70

बोवनी कर दी है –

मानसून बारिश के साथ हम किसानों ने बोवनी कर दिए। किसानों ने खेती के पूर्व खेतों में खाद बीज अन्य सभी तैयारियां कर चुके थे। इस बार बारिश होने के बाद मौसम खुल गया था जिससे सही तरह से इस बार बोवनी कर पाए हैं। – वीरेंद्र पटेल, किसान, अनारद

बारिश के हिसाब से करें बोवनी –

जैसे बारिश हो रही वैसे किसान बोवनी कर रहे हैं। किसान भाइयों से अपील है कि सोयाबीन व अन्य फसलों की बोवाई बीज उपचारित कर करें। विशेषकर कपास लगाने वाले किसान सगन दूरी पर कपास की बोवाई करें। – ज्ञानसिंह मोहनिया, उपसंचालक, कृषि विभाग



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