चांदन खेड़ी की घटना का कारण पुलिस-प्रशासन की लापरवाही व गैरजिम्मेदारी- जांच रिपोर्ट


भाजपा शासित मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन के बाद बीते साल के अंत में 29 दिसंबर को इंदौर संभाग के गौतमपुरा के चांदनखेड़ी गांव में सांप्रदायिक तनाव हुआ था। सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने 16 लोगों की एक टीम के साथ 6 जनवरी को चांदनखेड़ी पहुंच कर इस प्रकरण की छानबीन की और एक जांच रिपोर्ट तैयार की है। जांच दल ने अपनी रिपोर्ट इंदौर के पुलिस आयुक्त के मध्यम से राज्यपाल को भी प्रेषित किया है।


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मेधा पाटकर टीम के साथ जांच करती हुई


भाजपा शासित मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन के बाद बीते साल के अंत में 29 दिसंबर को इंदौर संभाग के गौतमपुरा के चांदनखेड़ी गांव में सांप्रदायिक तनाव हुआ था। सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर ने 16 लोगों की एक टीम के साथ 6 जनवरी को चांदनखेड़ी पहुंच कर इस प्रकरण की छानबीन की और एक जांच रिपोर्ट तैयार की है। जांच दल ने अपनी रिपोर्ट इंदौर के पुलिस आयुक्त के मध्यम से राज्यपाल को भी प्रेषित किया है।

मध्यप्रदेश के मंदसौर तथा उज्जैन में हिंदू और मुस्लिम समाज के बीच विवाद ही नहीं, हिंसा प्रकट होने पर विचलित हुए हम, विविध जनसंगठनों से जुड़े साथी यह सोच रहे थे कि वहां के विवाद को नजदीकी और बारीकी के साथ समझकर हम शांति स्थापित करने में अपना कदम उठाये। इतने में इंदौर संभाग के गौतमपुरा के चांदनखेड़ी गांव में 29 दिसंबर के रोज हुई घटना की खबर पहुंची और फैलते या फैलाती सांप्रदायिकता का एहसास खबरों से मिलने पर हम अहिंसा और सर्वधर्म समभाव के प्रति कटिबध्द साथियों ने समूह बनाकर वहां पहुंचना निश्चित किया और 6 जनवरी के रोज हम उस क्षेत्र में पहुंचे।

जन संगठनों के जांच दल में मेधा पाटकर, रामबाबू अग्रवाल, रामस्वरूप मंत्री, कैलाश लिम्बोदिया, एसके दुबे, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एहतेशाम हाशमी, सीएल सरावत, अरविंद पोरवाल, भागीरथ कछवाय सहित करीब 16 लोग शामिल थे जिन्होंने गांव में मौजूद एसडीओपी, थाना प्रभारी, सरपंच, पूर्व सरपंच तथा गांव के सैकड़ों लोगों से मुलाकात की। पीड़ित लोगों का पक्ष जाना तथा हुई नुकसानी को देखा और आंकलन किया।

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चांदन खेड़ी गांव में कुल 500 परिवार रहते हैं जिसमें से 99 फ़ीसदी मुस्लिम है केवल कुछ परिवार ही हिंदू हैं उनमें से भी 5 परिवार दलित और एक हिन्दू। इस गांव में पिछले 100 साल में कोई सांप्रदायिक वैमनस्य की घटना नहीं हुई है। जिस रैली की अनुमति के बारे में हमने पुलिस अधिकारियों से जानना चाहा तो वह इस बारे में कुछ भी नहीं बता पाए, ना तो संगठन का नाम और ना ही किसने अनुमति दी यह भी नहीं बता पाए।

धर्माट गांव से निकली, अयोध्या में बनने जा रहे राम मंदिर के मुद्दे पर तथा उसके लिए आगे चलकर चंदा इकट्ठा करने के इरादे से निकली यात्रा के दौरान हिंदू और मुस्लिम समाज में विवाद और हिंसक घटना बनने की खबर पर हमें यह देखना था कि उसकी पूर्वपीठिका, कारण, मीमांसा एवं उस पर की गई प्रशासकीय कार्यवाही क्या है तथा भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो, इसलिए शासन, प्रशासन एवं समाज की और हमारी भूमिका क्या होना जरूरी और संभव है। हम सभी जन संगठनों से जुडे सामाजिक कार्यकर्ता सामूहिक जांच व संवाद के आधार पर यह रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं।

चांदनी खेड़ी से लौटने के बाद गुरुवार को इंदौर में पत्रकारों को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए दल के सदस्य मेधा पाटकर, रामबाबू अग्रवाल, रामस्वरूप मंत्री, एडवोकेट एहतेशाम हाशमी, कैलाश लिंबोदिया, एसके दुबे और अरविंद पोरवाल ने बताया कि रैली निकाले जाने की सूचना भले ही अधिकृत रूप से नहीं होकर लेकिन अनधिकार रूप से पूरे इलाके और गांव के सारे लोगों को थी। इसी के चलते गांव के लोगों ने सुरक्षा की दृष्टि से अपने घर में ही रहना मुनासिब समझा।

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गांव के लोगों का कहना था कि

रैली में शामिल लोगों के हाथों में धारदार हथियार और बंदूक भी थी। उन्होंने यह भी कहा कि मीनार पर चढ़कर वहां झंडा लगाने की कोशिश की और मीनार पर तलवारों से वार किए। इसकी पुष्टि पुलिस अधिकारी ने भी की तथा बताया कि मीनार से पुलिस अधिकारियों ने ही 3 लोगों को उतारा जिसमें एक मुंह पर कपड़ा लपेटे हुए था 2 लोगों को गिरफ्तार किया और एक भाग गया।

इसी के साथ गांव के अंतिम छोर पर स्थित कादर पिता अकबर के मकान पर सुनियोजित तरीके से हमला किया गया। आगजनी की, ट्रैक्टर और जीप और मोटरसाइकिल को जलाया गया और 3 माह की मासूम बच्ची जो पलने में सो रही थी उसको भी जलाने की कोशिश की गई और जब वह परिवार के सदस्य उसे बचाने गए तो उनके साथ भी मारपीट की गई। कादर भाई के पांचों बेटे घायल अवस्था में अस्पतालों में भर्ती हैं जिनमें से चार एमवाय में थे जिन्हे जबरिया छुट्टी दिए जाने की बात सामने आई है और एक सीएचएल अपोलो में इलाजरत है।

गांव के लोगों का कहना था कि

उन्होंने आगजनी के बाद कंट्रोल रूम और फायर ब्रिगेड को सूचना दी। गांव में फायर ब्रिगेड पहुंचा भी सही, लेकिन उसे आग बुझाने स्थल तक नहीं जाने दिया गया। इस बात का भी वीडियो है कि रैली के बाद पूर्व विधायक मनोज पटेल गांव में आए और वहां उन्होंने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि इस गांव के मकानों को यदि प्रशासन, कलेक्टर, कमिश्नर ने नहीं तोड़ा तो वे इसे रौंद देंगे और उसी के बाद 12 से 15 मकानों को तोड़ा गया और बगैर पंचायत की जानकारी के वहां पर सड़क निर्माण की गई। जिनके मकान टूटे हैं, उन्हें ना तो कोई नोटिस दिया गया और न ही सरपंच को बताया गया।

दल के सदस्यों ने बताया कि

हम यह मानते हैं कि पुलिस और प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और वह सारी घटना की मूकदर्शक बनी रही जिसके चलते यह सांप्रदायिक विद्वेष फैला है। इस बात की भी दल ताकीद करता है कि देशभर में चल रहे किसान आंदोलन से ध्यान भटकाने के लिए ही शायद मध्यप्रदेश में मंदसौर, उज्जैन और गौतमपुरा के चांदन खेड़ी में इस तरह की घटनाएं की गई हैं। हमारी सामूहिक जांच और विश्लेषण से यह बात सामने आती है कि यह घटना पूर्व नियोजित है।
रैली जिनमें कई गांव के लोग शामिल थे और अगर रास्ता चांदन खेड़ी से ना लेने का विकल्प ढूंढा जा सकता था। लेकिन, मुस्लिम गांव के निकालना नामंजूर करने का आग्रह कुछ मुस्लिम समाज के नुमाइंदों ने इंदौर कलेक्टर से किया है जिसे हम मंजूर नहीं करते हैं और हम लोकतांत्रिक अधिकारों पर कुठाराघात के किसी भी समाज या दल के मांग से सहमत नहीं हैं।

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हमारी मांग है –

  • अस्पताल में भर्ती हुए जख्मी लोगों के स्पष्ट बयान और दोषियों की पहचान होना जरूरी है।
  • इस घटना की तथा उज्जैन व मंदसौर की भी संपूर्ण निष्पक्ष जांच समयबद्ध तरीके से भूतपूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में की जाए।
  • चांदन खेड़ी के गांववासियों से संपूर्ण नुकसान की पंचनामा आधारित भरपाई उन्हें भुगतान की जाए।
  • रैली का मार्ग, प्रयोजन तथा प्रक्रिया और नेताओं के बयान आवेदन जांच का हिस्सा होकर स्पष्ट जांच हो।
  • सांप्रदायिक जहर नहीं फैले और सद्भाव बड़े इसकी कोशिश समाज सभी राजनीतिक दलों और प्रशासन तथा पुलिस को करना चाहिए।
  • हिंसा के दोषियों पर निष्पक्ष जांच के बाद ही कार्यवाही हो रासुका का उपयोग गैर जरूरी मानकर भेदभाव मिटाने की दिशा में कदम उठाए जाएं।

मध्यप्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री इंदौर में रहते हुए सांप्रदायिकता का शिकार हुए गांव के लोगों से मिलने नहीं गए तथा उनकी पीड़ा को नहीं सुना। इसकी हम निंदा करते हैं तथा पथराव के अलावा भी जो कानून बना रहे हैं। उसमें सांप्रदायिकता को भी एक जघन्य अपराध मानना चाहिए ऐसी हमारी मांग है।

सौजन्य – जनपथ



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