संविदा के खिलाफ़ कर्मचारी, बच्चे अपने माता-पिता के लिए मांग रहे सीएम शिवराज से इंसाफ़


संविदा व्यवस्थाः जिसे सीएम शिवराज ने भी अन्यायपूर्ण कहा लेकिन कभी ख़त्म नहीं किया, ये कर्मचारी अब बन सकते हैं राजनीतिक मुद्दा!


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उनकी बात Updated On :

भोपाल। संविदाकर्मी एक ऐसी संज्ञा जो कर्मचारियों में डर की भावना जगाती है, एक संज्ञा जिसे अन्यायपूर्ण कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद इस अन्याय का हल नहीं। संविदा कर्मचारी जिसका सादी भाषा में मतलब कच्चे कर्मचारी यानी जिनकी नौकरी पक्की न हो और जो एक संविदा यानी अनिश्चित अवधी के लिए नौकरी पर लगाए गए हों।

भले ही ये कर्मचारी नियमित कर्मचारियों की तरह काम करते हों, लेकिन इसके बावजूद इन्हें वेतन और सुविधाएं उनसे आधी भी नहीं मिलती। मध्यप्रदेश में कई विभागों में पिछले करीब पच्चीस वर्षों से कर्मचारी अपनी संविदा खत्म होने के बाद नियमित होने का इंतज़ार कर रहे हैं और कई तो इसी तरह रिटायर्ड हो चुके और कई होने को हैं लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी।

ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस व्यवस्था और इन कर्मचारियों के हाल से वाक़िफ़ नहीं है। मार्च 2018 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद भी इस व्यवस्था को अन्यायपूर्ण बताया और इसे खत्म करने की बात कही थी। उस समय शिवराज चुनाव नहीं जीते लेकिन बाद में वे मुख्यमंत्री बन गए। इसके बाद भी उन्होंने संविदा कर्मचारियों की स्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया।

मध्यप्रदेश में संविदा कर्मचारी अधिकारियों की संख्या करीब डेढ़ लाख है। स्वास्थ्य विभाग, पंचायत विभाग और राज्य शिक्षा केंद्र में इसके सबसे ज्यादा कर्मचारी हैं। इतना बड़ा आंकड़ा होने के बाद भी इन कर्मचारियों की ओर सरकारें ध्यान नहीं देती क्योंकि इन कर्मचारियों को अबतक चुनावों में कोई बहुत गंभीर खतरा नहीं माना जाता था, लेकिन अब स्थिति बदल रही है।

आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की प्रदेश सरकारें संविदा कर्मचारियों के विषय में गंभीर कदम उठा रहीं हैं और इन्हें नियमित करने की तैयारी कर रहीं हैं। ऐसे में मध्यप्रदेश के संविदा कर्मचारियों में भी आस जागी है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी रविवार को एक ट्वीट कर गुजरात और हिमाचल में संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का वादा किया है।

माना जा रहा है कि ऐसे में आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश में यह मुद्दा और भी ज़ोर पकड़ सकता है। कुछ संविदा कर्मचारी भी इसके लिए तैयारी कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश के सर्व शिक्षा अभियान से जुड़े कर्मचारी कुछ दिनों से एक पोस्टकार्ड अभियान चला रहे हैं। वे हर पखवाड़े में करीब दो दर्जन पोस्टकार्ड राज्य के मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों को लिख रहे हैं।

इन पोस्टकार्ड में अपील की जा रही है कि संविदा कर्मचारियों को नियमति किया जाए क्योंकि कम वेतन में उनका परिवार पालना मुश्किल है और परीक्षा पास करने के बाद भी उनके श्रम और प्रतिभा का इस तरह से उपयोग करना उनका मख़ौल उड़ाने जैसा है।

अब इस अभियान में संविदा कर्मचारियों के बच्चे भी जुड़ रहे हैं। ये बच्चे भी अब मुख्यमंत्री शिवराज से अपने माता-पिता की नौकरी को नियमित करने की मांग कर रहे हैं।

नौकरी में कई साल गुजार चुके संविदा कर्मचारियों के बच्चे अपने मातापिता के भविष्यको लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि उनके नौकरी में कई साल गुजारने के बाद भी उनके माता पिता के कर्मचारियों का भविष्य सुरक्षित नहीं हैं।

मध्यप्रदेश के संविदा कर्मचारियों की स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महिला कर्मचारियों को अब तक चाईल्ड केयर यानी अपने शिशु की देखभाल के लिए कोई छुट्टी नहीं दी जाती है। इन्हें केवल 6 महीने का मातृत्व अवकाश दिया जाता है जबकि नियमित कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश के अलावा अपने शिशु की देखभाल के लिए अधिकतम दो वर्ष तक का सवैतनिक अवकाश मिलता है।

प्रदेश में करीब तीन हजार संविदा कर्मचारी ऐसे हैं जिन्हें नौकरी करते हुए करीब पच्चीस साल से ज्यादा हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर कर्मचारी राजीव गांधी शिक्षा मिशन में साल 1995 से नियुक्त हुए हैं। इनके बाद प्रदेश में कई नियमित कर्मचारी ऐसे नियुक्त हुए हैं जो इन्हीं के साथ या इनके नेतृत्व में काम करते हैं, लेकिन उनका वेतन इन दो दशकों से भी ज्यादा पुराने कर्मचारियों से काफी कम है। ऐसे में इन कर्मचारियों में भेदभाव पनपता है।

इन कर्मचारियों को सालाना इंक्रीमेंट नहीं लगता। इंक्रीमेंट को लेकर संविदा कर्मचारियों के लिए बनाई गईं योजनाएं काफी उलझी हुईं हैं। इन्हें 13 साल पुराने यानी साल 2009 के आधार पर ही छठवा वेतन मान दिया जाता है जबकि इनके ही समकक्ष कर्मचारियों को सातवां वेतनमान दिया जाता है।

मुख्यमंत्री शिवराज ने इस व्यवस्था को खत्म करने की बात मार्च 2018 में कही थी। उस समय उन्होंने कहा था कि संविदा व्यवस्था अन्यायपूर्ण है। ऐसे में लगा था कि अब इसके विषय में सरकार कोई बड़ा कदम उठा सकती है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

अब ये कर्मचारी एक बार फिर इसी वादे को सीएम शिवराज को याद दिला रहे हैं। यह फिर उसी समय यानी चुनाव के ठीक पहले हो रहा है, लेकिन इस बार परिस्थितियां अलग हैं। सीएम शिवराज ने दोबारा सत्ता में आने के बाद अपना वादा अब तक नहीं निभाया है। ऐसे में विपक्षी पार्टियां भी इस मुद्दे पर कर्मचारियों को रिझाने में लगी हुई हैं।

पिछले दिनों उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने संविदा कर्मचारियों को नियमित करने का ऐलान किया था। इससे पहले पंजाब की आप सरकार ने भी ऐसा निर्णय लिया था। हाल ही में राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकारों ने भी संविदा कर्मियों को नियमित करने की बात कही है।

ऐसे में मध्यप्रदेश में संविदा पॉलिसी को लेकर सरकार का रवैया इन कर्मचारियों को परेशान या निराश करने वाला है। ऐसे में ये कर्मचारी अब बेरोजगार युवाओं की भीड़ के साथ भी दिखाई दे रहे हैं और यह भीड़ किसी भी दल के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है।



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