नगरीय निकायः महू विधानसभा के सबसे मज़बूत क्षेत्र में दिलचस्प हुई राजनीति, भाजपा और कांग्रेस दोनों में बंटे हुए हैं ‘अपने’


क्या कैलाश विजयवर्गीय और कविता पाटीदार के खिलाफ़ लड़ रहे हैं भैया जी!
कांग्रेसी नेताओं पर क्यों भाजपा का साथ देने का आरोप लगा रहे हैं उनके ही प्रत्याशी!


अरूण सोलंकी अरूण सोलंकी
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इंदौर। नगरीय निकायों में चुनावों की सरगर्मियां तेज़ हैं। नगर निगम की तरह इंदौर जिले की लगभग सभी नगर परिषदों में कार्यकर्ता अपने नेताओं से नाराज़ हैं। महू तहसील की महूगांव नगर परिषद में राजनीति की यह सरगर्मी सबसे ज्यादा तेज़ है।  यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों में ख़ासी उठापठक मची हुई है। यहां प्रत्याशियों और उनके नेताओं दोनों की साख दांव पर है।

महूगांव नगर परिषद पहले कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी लेकिन इसके बाद यहां के कद्दावर नेता रामकिशोर शुक्ला अपने साथियों के साथ भाजपा में आ गए और तब से ही यहां भारतीय जनता पार्टी का ही बोलबाला है। यह परिषद इसलिए भी अहम है क्योंकि विधानसभा चुनावों में भाजपा को हर बार यहां से तय जीत मिलती रही है। अबतक यहां रामकिशोर शुक्ला को अस्थिर करने की कोशिशें दोनों ही ओर से हुई हैं लेकिन वे बने रहे और इस बार भी पंद्रह पार्षद प्रत्याशियों में से 13 के टिकिट उनकी पसंद के हैं। ऐसे में अब चुनाव शुक्ला के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है।

भाजपा की ओर से जारी 15 नामों की सूची में वार्ड क्रमांक 1 शांतिलाल पाटीदार, वार्ड दो से 3 से शर्मिला मुकाती तथा वार्ड नंबर 10 से डॉ स्वर्णा दुबे ने किसी तरह अपने लिए टिकिट हांसिल किया है। बताया जाता है कि इनके लिए हालही में राज्यसभा पहुंची कविता पाटीदार ने कोशिशें की हैं।

इनमें वार्ड नंबर दस सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। जहां से उम्मीदवार स्वर्णा दुबे एक स्थानीय चिकित्सक और कारोबारी तथा भाजपा से जुड़े रहे डॉ. प्रशांत दुबे की पत्नी हैं। उनकी अपनी कोई राजनीतिक पहचान नहीं है।  दुबे परिवार के पास स्थानीय स्तर पर काफी वोट हैं लेकिन इनमें से कितने उन्हें मिलते हैं यह समय ही बताएगा। बताया जाता है कि उनके लिए भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी प्रयास किये हैं।

रामकिशोर शुक्ला वैसे तो विजयवर्गीय के करीबी रहे हैं लेकिन मौजूदा विधायक उषा ठाकुर और विजयवर्गीय के विवाद के चलते बहुत से नेता खुलकर अपना पक्ष नहीं रख पा रहे हैं। महूगांव क्षेत्र में अपनी राजनीति बचाए रखने के लिए रामकिशोर शुक्ला ने विधायक और मंत्री बनीं उषा ठाकुर को भी सहयोग किया। ऐसे में बताया जाता है उनके विरोधी कैलाश विजयवर्गीय से मिलकर मदद मांग रहे हैं।

इनके खिलाफ़ भाजपा नेताओं से ही सर्मथन प्राप्त निर्दलीय प्रत्याशी भी मैदान में हैं। बताया जाता है कि दुबे की महत्वाकांक्षा अध्यक्ष बनने की है। हालांकि दुबे परिवार का चुनावी अनुभव न के बराबर हैं और एक तरह से उनके सामने खुद रामकिशोर शुक्ला मैदान में हैं और इसी वार्ड में शुक्ला के सर्मथक भी काफी संख्या में हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि यहां भाजपा के एक पुराने और वोट बैंक के बड़े नेता रामकिशोर शुक्ला और राज्यसभा तक पहुंचने वाली नई नेता कविता पाटीदार के बीच मुकाबला है।

कहानी कांग्रेस की…

इसके अलावा कांग्रेस में भी कलह कम नहीं हैं। यहां से उनके तीन उम्मीदवार अपनी नाराजगी जता रहे हैं।  इन्होंने अपने नाम वापस लेने की धमकी दी है। इनकी दलील है कि कांग्रेसी नेताओं ने भाजपा के सामने कांग्रेस की ओर से कमजोर प्रत्याशियों को टिकिट दिया है। इन नेताओं ने नाम वापसी की धमकी देकर बड़े नेताओं पर दबाव बनाने की कोशिश की है।

नाम वापस लेने की धमकी देने वाले नेताओं में वार्ड क्रमांक सात से सपना शर्मा, दस से सपना चौहान और 11 से अक्षय प्रेमदास हैं। इनका कहना है कि ये कांग्रेसी नेताओं ने दूसरे वार्डों में कमजोर उम्मीदवार खड़े किये हैं ताकि भाजपा का नगर परिषद पर कब्जा हो जाए। हालांकि दूसरे वार्डों में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को कमजोर बताकर विरोध करने वाले ये प्रत्याशी खुद भी पहली बार ही चुनाव लड़ रहे हैं।

इस बारे में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव का कहना है कि उन्हें केवल इस बारे में खबर ही मिली है इसके अलावा किसी तरह का विरोध उनके सामने नहीं आया है लेकिन इस विषय पर वे विरोध करने वाले प्रत्याशियों से बात करेंगे। यादव के मुताबिक उन्होंने सोच-समझकर टिकिट दिया है।

हालांकि कांग्रेस नेताओं की यह बात भी पूरी तरह हजम नहीं होती है क्योंकि पिछले कुछ समय में इस इलाके से सक्रिय रहे कांग्रेसी नेताओं को इस दौरान टिकिट नहीं दिया गया है। इनमें युवा कांग्रेसी निशान सिंह चौहान भी हैं। कुछ दिनों पहले पार्टी की ही गुजबाजी से तंग आकर एक युवा नेता गौरव सिंह सोलंकी ने पार्टी ने छोड़ दी थी। ऐसे में कांग्रेसी नेताओं के स्तर पर प्रबंधन को भी सही कहना ठीक नहीं होगा।

 



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