जिंदगी के हर किरदार में कामयाबी के रंग भरती हटा की बेटी दीपाली, मिल चुके हैं कई सम्मान


हटा की बेटी दीपाली की जिंदगी रंगों ने बदल दी है। रंगों की इस यात्रा ने कामयाबी के नए-नए आयाम भी देखे, लेकिन अपने हुनर से एक विलुप्त होती कला को जीवंत बनाए रखने का उसका फितूर आज भी उसी शिद्दत से जारी है।


विनोद पटेरिया विनोद पटेरिया
दमोह Published On :
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हटा/दमोह। बुंदेलखंड की उपकाशी, रत्न्गर्भा हटा नगरी ने एक नहीं अनेक प्रतिभाओं को उभारा है। आज समूचे भारत में हटा नगर उपकाशी का नाम यहां की बेटी दीपाली रोशन कर रही हैं। प्रतिभा भी ऐसी निखरी जिसे एक नहीं कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया।

नगर के वरिष्ठ अधिवक्ता विनोद श्रीवास्त्व एवं सेवानिवृत्त शिक्षिका माधुरी श्रीवास्ततव की बड़ी बेटी दीपाली की जिंदगी रंगों ने बदल दी है। रंगों की इस यात्रा ने कामयाबी के नए-नए आयाम भी देखे, लेकिन अपने हुनर से एक विलुप्त होती कला को जीवंत बनाए रखने का उसका फितूर आज भी उसी शिद्दत से जारी है।

दीपाली सिन्हा ने अपने फैशन को प्रोफेशन बनाने का जब फैसला लिया। दुनियाभर में मशहूर केरल का कथकली नृत्य 300 साल पुराना है। कथकली में कलाकार के आंखों के हाव-भाव जितनी अहम भूमिका निभाते हैं, उतना ही अहम रोल मेकअप का भी होता है। इसके लिए ख़ास मेकअप आर्टिस्ट होते हैं, जिन्हें ‘चुट्टीकारन’ कहा जाता है। इस कला में मेकअप चेहरे और चरित्र को बदलने में अपना जादुई असर डालता है।

चुट्टीकारन मेकअप आर्टिस्ट दीपाली सिन्हा बताती हैं कि कथकली मेकअप करना एक खास किस्म का हुनर है। मेकअप में वो जादू है, जो चरित्र के हिसाब से कलाकार का पूरा व्यक्तित्व बदल सकता है। नृत्य के हर एक किरदार को तैयार करने में 3 से 4 घंटे का समय लगता है। दीपाली कथकली मेकअप के लिए रंग भी खुद ही अपने घर में बनाती हैं।

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उन्हें इंटरनेशनल सेंटर फॉर कथकली की ओर से सर्वश्रेष्ठ आर्टिस्ट के सम्मान से नवाजा गया गया। इसके पहले 2015 में उन्हें उत्तर भारत की सर्वश्रेष्ठ चुट्टी आर्टिस्ट का खिताब मिला। इंजीनियरिंग छोड़ अपने हुनर से कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में नाम कमाने वाली दीपाली को ब्रजभूमि फाउंडेशन द्वारा देश की सबसे प्रभावशील 51 महिलाओं में चुना गया है।

विलुप्त होती कला को बचाने की कवायद –

दीपाली इस अनोखी और विलुप्त होती कला को जीवंत बनाने के लिए जी-जान से जुटी हुई हैं और अन्य लोगों को भी इससे जोड़ रही हैं। इस कला को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए दीपाली अलग-अलग राज्यों में इसका आयोजन भी करती हैं।

उत्तर भारत में इस कला को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कुछ साल पहले ‘शुभदीप’ नाम से एक स्कॉलरशिप भी शुरू की है। दीपाली की कुछ अलग और नया सीखने की ललक अब भी खत्म नहीं हुई है। उम्र के इस पड़ाव में भी वो बेहद मुश्किल समझी जाने वाली कथकली नृत्य विधा सीखने के साथ ही परफॉर्म भी कर रही हैं।

पर्यावरण की पुरोधा –

कला और संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय रहने वाली दीपाली प्रकृति से भी खासा लगाव रखती हैं। इसके लिए उन्होंने वाकायदा एक संस्था वेस्ट मैनेजमैंट रीसायक्लिंग सोसाइटी (डब्लूमार्स) बनाई है, जिसका मकसद देश में प्लास्टिक वेस्ट के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करना और उससे निजात पाने के तरीकों को लोगों तक पहुंचाना है।

डब्लूमार्स सरकार की प्लास्टिक की पाबंदी पर सख्ती से लिए गए निर्णय का साथ देने के लिए प्रतिबद्ध है। डब्लूमार्स संस्था के जरिये प्रदूषण के खिलाफ जंग छेड़ रही हैं। सामाजिक क्षेत्र में सराहनीय काम और व्यापी ‘कचरा प्रबंधन’ के कार्य के लिए दीपाली सिन्हा को कालिंदी अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है।

दीपाली वर्तमान में देश की राजधानी दिल्ली के इंदिरापुरम में अपना मुकाम बनाये हुए हैं, लेकिन सोशल साइट्स पर अपनी जन्मभूमि हटा दमोह को उल्लेख करना नहीं भूलती हैं। बुंदेली भाषा में बात करना उन्हें अच्छा लगता है। बुंदेली संस्कृति परंपरा को सदैव लेकर चलने की बात भी वे अकसर कहती हैं।



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